Sunday, November 22, 2009

गंगू तेली की जयपुर यात्रा

पिछले दिनों स्नेहा शर्मा ने लिखा- कहां खो गए हो गंगूजी...? यकीनन खो तो नहीं गए थे, पर क्या करते! महीने भर से तो हम अपने में ही नहीं थे। बात ही कुछ ऐसी हो गई। वैसे तो 'अपने राम' बड़ी-बड़ी दार्शनिक बातें करना नहीं जानते। लेकिन यह बात तो जानी-परखी है सो कहे देता हूं- ज़िन्दगी में कई मौके ऐसे भी होते हैं, जब अच्छे-अच्छों का खुद से काबू छूट जाता है। अपने साथ को कई बार ऐसा हुआ।

अम्मा-बाबूजी की बातों में पड़कर अपनी आजादी गवां बैठे। घरवाली तो इसी बात पर ताना भी देती है- "अगर उस समय दिल पर काबू रखा होता, तो आज तुम्हारी बीवी बनकर दु:ख भोगने से तो बच ही जाती।" पर कहां साहब। कभी-कभी दिल की लगाम छूट जाती है। आप सब भी इसे बखूबी समझते होंगे। वैसे, आपके दिल की हमको नहीं मालूम, लेकिन 'अपने राम' तो जयपुर में इण्डियन ऑयल के डिपो में आग लगने के बाद से ही सदमे में थे। बाप रे बाप... क्या आग थी वह। आग लगने के दूसरे ही दिन राजा भोज ने आदेश निकाल दिया- गंगू तेली आग से प्रभावित स्थान का जायजा लेंगे। राजाजी का ऑर्डर कोई टाला जा सकता है भला? सो तब से गंगूजी तो जयपुर में ही डेरा डाले हुए थे। बहुत करीब से देखा सब कुछ। आग भी ससुरी दो हफ्ते तक चली। करोड़ों का तेल धुएं में बदल गया। पहले तो कीमत का पता नहीं था, पर अभी मुरली चाचा ने संसद में बताया कि आग के कारण साढ़े तीन सौ करोड़ का दिवाला पिटा है, तब से तो ब्लड प्रेशर भी आउट ऑफ कंट्रोल हुआ जा रहा है। उन्होंने बताया कि आग में 191 करोड़ रुपए के पेट्रोलियम उत्पाद जलकर नष्ट हो गए तथा आसपास के भवनों और मशीनरी को करीब 160 करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है। तेल डिपो के सभी 11 टैंक पूरी तरह नष्ट हो गए हैं। इस टर्मिनल में आधारभूत ढांचे का पुननिर्माण करने में ही अब दो साल का समय लगेगा।


अपन को तो इस नुकसान के बारे में सुनकर ही अजीब लगता है। सीतापुरा टर्मिनल 1995 में चालू किया गया था। उस समय यह शहर से दूर तथा अलग-थलग था। बाद में सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र बनने के साथ ही इस क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ। नतीजा, आबादी के बीच आ गया यह इलाका। अब अपन को तो समझ ही नहीं आ रहा। किसको दोष दें? बढ़ती आबादी को या तेल वालों को लापरवाही को? खैर, एक बात को पक्की है। होनी को तो कोई टाल नहीं सकता। हालांकि लोग कहते हैं कि ऑयल टेंक का वॉल्व लीक था, पर ससुर के नातियों ने ध्यान ही नहीं दिया। कम्बख्त जब आग भड़की, तभी याद आया इसे दुरुस्त करना। लेकिन एक बार बिगडऩे के बाद तो सुधारना मुश्किल होता ही है। चाहे रिश्ते हों या मशीनें। सो आखिर पूरी तरह बिगड़ ही गया। पूरे जयपुर की सांसों में धुएं का जहर घुल गया। प्रवासी पंछियों तक को लौटना पड़ा। फ्लेमिंगो पक्षियों का कुनबा यह शहर ही छोड़ गया। आग से निकली कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन-डाई-आक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स और सल्फर-डाई-ऑक्साइड्स जैसी गैसों के कारण इन पंछियों को सांस संबंधी दिक्कत और आंखों में जलन हो रही थी।


अपने राम तो इस आग को देखकर सन्न रह गए। कहां तो रेगिस्तान में तेल निकलने की खुशी में बौराए हुए थे, कहां इतना बड़ा नुकसान हो गया। खैर, साहब। अपन तो अब यही कहते हैं कि जो हुआ, सो हुआ। दूसरे तो सबक ले लो। कई जगह पर ऑयल डिपो की स्थितियां इससे भी बुरी है। अगर वे नहीं जागे तो राम ना करे किसी दिन और कुछ घटित हो जाए।


वैसे, आपको बता दूं कि हमारे तेलीबाड़े में एक मजनू घूमता है। पागल-दीवाना। उसके सामने कोई अगर दिल-जिगर या प्यार-मोहब्बत की बात करे तो पत्थर लेकर पीछे दौड़ पड़ता है। कहते हैं उसकी प्रेमिका उसे छोड़कर चली गई थी। इसके बाद से उसे इन अल्फाज से चिढ़ हो गई। तेल वालों के लिए यह मजनू आदर्श होना चाहिए। एक बार नुकसान झेल लिया, अब बार-बार यही करोगे क्या.......?


- गंगू तेली

Sunday, October 25, 2009

कर्जे की माया

हुजूर....! दिवाली की राम-राम। आप भी सोच रहे होंगे, ये गंगू भी कैसा बावळा है! दिवाली गए हफ्ता बीत गया और इसको अब राम-राम करने की सूझी है...। पर साहब आप को क्या बताएं? अपनी दिवाली तो पिछले साल 26 अक्टूबर को ही मनी थी। क्या दिन था वह भी। उम्मीदों से कहीं बढ़कर खुशियां हमारी झोली में आ गिरी और इस साल के फरवरी तक हमारे घर में ही रही। दिल में भी तभी तक दिवाली थी। इसके बाद तो जाने किसकी नजर लग गई। सब कुछ ऐसे काफूर हो गया, जैसे पूजा के कमरे में रखा हुआ कपूर हवा में घुल जाता है। पर सबसे बड़ा फर्क यह था जनाब कि कपूर के कारण घर-आंगन खुशबू से लबरेज हो जाता है, लेकिन यहां तो जाने कैसी-कैसी गंध फैल गई। जून के बाद तो और भी उजाड़ हो गया। आप भी सोच रहे होंगे, ये गंगू आज कैसी उल्टी बातें कर रहा है। पर क्या बताएं हुजूर, कभी-कभी मन पर काबू ही नहीं रहता। ना चाहते हुए भी बहुत कुछ निकल जाता है जुबान से।

खैर, आप लोग तो इस तरफ सौ ग्राम भी भेजा मत खपाइए। अपन तो यूं ही जज्बाती हो गए थे। चलिए, मुद्दे पर लौटते हैं। दरअसल, दिवाली का मौका था तो अपन राजा भोज से मिलने चले गए थे। एकाध दिन पहले ही लौटना हुआ है। वहां गांव के सेठ लाला चम्पकलाल से भी मिलना हो गया।

अपने-राम को देखते ही बोले- क्या रे तेली! दिखता नहीं आजकल? करता क्या है? अपन ने भी टके सा जवाब दे दिया- मौज कर रहा हूं। बस इसी बात पर लालाजी बिगड़ गए। गुर्राते हुए कहने लगे- हां भई, तुम क्यों न करोगे मौज.....? काम ही यही है तुम्हारा तो...। कमाना-धमाना तो है नहीं। बस, ऋण लो और घी पीओ। वैसे भी, दुनिया भर की फाइनेंस कम्पनियां खुल गई हैं तुम्हारे जैसे लोगों के लिए। इसीलिए पट्ठे इधर का रस्ता भी भूल गए हो। वरना हमारे बिना तो धेले जित्ता काम भी ना होता था तुम्हारा।

लालाजी तो ऐसे खीझे जैसे लाखों का कर्जा उठाकर हमने उन्हें ठेंगा दिखा दिया हो। खैर, अपन ने धीरज का बांध टूटने नहीं दिया और पूरा दम लगाकर लालाजी की बात को उखाड़ फेंका- मांई-बाप, आप ही बताओ कर्जा लेकर मौज कौन नहीं करता। बड़े-बड़े धन्ना सेठ भी आजकल यही करते हैं। कार या बंगला लेने के लिए बैग में नोट भरे हो तो भी बैंक से कर्जा लेते हैं। ताकि काली कमाई की पोल जगजाहिर ना हो जाए। और तो और बड़ी-बड़ी कम्पनियों के मालिक भी झट से हाथ फैला लेते हैं। कुछ तो इसमें भी बड़े शातिर होते हैं। धन का जुगाड़ किसी और तरीके से करते हैं और बताते कुछ और हैं। अब देखिए ना...। राजस्थान के सुनहरे धोरों से तेल निकालने वाली कम्पनी ने हाल ही 1.6 अरब की वित्तीय सहायता जुटाई। इसके बाद अखबारों में खबरें छपी कि कम्पनी ने कर्जा लिया है। दूसरे ही दिन अपने राम को पता चला कि कम्पनी ने मलेशिया वालों को हिस्सेदारी बेचकर ये पैसा जुटाया है और मलेशियन कम्पनी इसे अपनी उपलब्धि मानकर बल्लियों उछल रही है। तेली-भाइयों की मानें तो कम्पनी की मलेशिया वालों के साथ भागीदारी तो पहले से थी, पर अब ये 2.3 फीसदी से बढ़कर 14.94 फीसदी तक हो गई है। कहने वाले तो यह भी कह रहे है कि मलेशिया वाली कम्पनी और भागीदारी खरीदने के मूड में है।

अब साहब, अपन तो ठहरे अनपढ़ तेली। दिल के मामले में तो पहले ही फेल हो चुके। अब भला दिमाग के मामले में कहां से पास हो जाने हैं। यानी साहब अपने राम तो सूपर-डूपर 'फेलेश्वरनाथ' हैं। इसीलिए, यकीन जानिए हुजूर... अपने राम को तो यह 'माया' जरा भी समझ नहीं आई। वैसे, इस इलाके के महारथी बताते हैं कि विदेशी माता-पिता की संतान भारतीय कम्पनी के लिए भी यह खुशी की बात है। इस कम्पनी के बड़े अफसर भी खूब राजी हो रहे हैं। वैसे भी, मलेशिया वाली कम्पनी ने तीसरी दफा अपनी भागीदारी बढ़ाई है। खैर, जो भी हो साहब! अपने राम तो सभी के लिए भलाई की दुआ ही करते हैं, पर विनती सिर्फ इतनी है कि हुजूरे-आला हमने जैसा समर्पण दिया है, वैसा ही आप भी दीजिएगा। क्योंकि विश्वास टूटता है तो आवाज नहीं होती, मगर दर्द बहुत होता है.... और हम तो इसे भुगत ही रहे हैं.....।

Sunday, October 11, 2009

केयर्न इंडिया को राजस्थान सरकार का नोटिस

हे भग्गू! इस दुनिया का क्या होगा? इस सवाल के साथ ही अपने राम ने सवेरे अखबार खोला तो पता चला जना कि राजस्थान सरकार ने केयर्न इंडिया को बाड़मेर के तेल कुओं से निकाले गए शुरुआती क्रूड ऑयल पर 2 प्रतिशत सीएसटी ऑनलाइन जमा कराने को लेकर नोटिस दिया है। राज्य सरकार ने कहा है कि क्रूड ऑयल पर जब वैट 4 प्रतिशत बनता है तो फिर 2 प्रतिशत सीएसटी का क्या मतलब है। राज्य सरकार ने केयर्न के इस कदम को चालाकी भरा मानते हुए कंपनी के अधिकारियों से इस बारे में सख्त नाराजगी भी जताई है।
खबरचियों के अनुसार केयर्न ने पहले 1.43 लाख रुपए वाणिज्य कर विभाग में जमा कराने की कोशिश की थी, लेकिन विभाग ने मना कर दिया। इसके बाद केयर्न इंडिया ने 25 सितंबर, 09 को 1.43 लाख रु. वाणिज्य कर विभाग में ऑन लाइन जमा करा दिए हैं। इसे लेकर राज्य और कंपनी के बीच विवाद बढ़ चुका है। राज्य सरकार का कहना है कि तेल का सेल पॉइंट यानी बिक्री केन्द्र राजस्थान में है, तो आधा टैक्स किस आधार पर जमा कराया गया है।

300 करोड़ का नुकसान

बात यह है भाई साहब कि केयर्न के ऐसा करने से राजस्थान की सरकार को करीब 300 करोड़ रुपये का सालाना नुकसान होगा। मंगला क्षेत्र से निकलने वाले क्रूड ऑयल पर तीस साल की अवधि में 16000 करोड़ रुपये वैट के रूप में मिलने की संभावना है। इस प्रकार औसतन चार से पांच सौ करोड़ रुपए प्रति साल मिल सकते हैं। अगर दो प्रतिशत सीएसटी के हिसाब से ही टैक्स मिला तो राज्य को सीधा सीधा ढाई सौ से तीन सौ करोड़ रुपए हर साल की नुकसान होने की संभावना है। कंपनी के उच्चतम क्षमता (डेढ़ लाख बैरल प्रतिदिन) पर उत्पादन होने की दशा में राज्य को यह नुकसान और भी ज्यादा हो सकता है।


पहली बार मंगलौर पहुंचा 'राजस्थानी तेल'

थार के धोरों से निकल रहे कच्चे तेल की पहली खेप शोधन के लिए शुक्रवार को ओएनजीसी की मंगलौर रिफाइनरी पहुंच गई। 2 लाख 8 हजार बैरल (29 हजार टन) की यहपहली खेप बाड़मेर से टैंकर्स के जरिए गुजरात के काण्डला बंदरगाह तक पहुंचाई गई थी। यहीं पर क्रूड ऑयल को स्टोर किया गया। अब इसे शोधन के लिए पहुंचाया गया है। बाड़मेर में तेल दोहन की शुरूआत गत 29 अगस्त को हुई थी। इधर, मंगलौर रिफाइनरी एवं पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (एमआरपीएल) ने पहले ही दिन से राजस्थानी तेल के शोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। रिफाइनरी तक जलमार्ग से यह तेल पहुंचाया गया है। कच्चे तेल के पहले मालवाहक जहाज का मंगलौर में ओएनजीसी, एमआरपीएल, केयर्न इण्डिया एवं स्थानीय प्रशासन ने स्वागत किया।

फिर से अव्वल
यह तीसरा मौका है जब एमआरपीएल को किसी जगह से उत्पादित तेल शोधन के लिए पहले पहल नामित किया गया हो। इससे पहले वर्ष 2003 में सुडान तथा वर्ष 2006 में रूस के तेल क्षेत्रों से निकले तेल की पहली खेप भी शोधन के लिए यहीं पहुंची थी।

राजस्थान में रिफाइनरी की आस

रिफाइनरी का सपना देखने वालों के लिए एक और अच्छी ख़बर है। चार साल पहले राजस्थान में रिफाइनरी की आस जगाने वाली इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड (ईआईएल) अब नए सिरे से प्रदेश में रिफाइनरी की "प्रबल सम्भावना" का रास्ता तलाशेगी। इसके लिए ईआईएल को मौजूदा वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जल्दी से जल्दी पुरानी स्टडी रिपोर्ट अपडेट करने के लिए कहा गया है। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ओएनजीसी) के चेयरमैन आर.एस.शर्मा की मौजूदगी में हाल ही दिल्ली में हुई उच्चाधिकार समिति की बैठक में यह निर्णय किया गया है। पूर्व केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव एस.सी.त्रिपाठी की अध्यक्षता में राज्य सरकार की ओर से गठित उच्चाधिकार समिति ने इसके लिए ओएनजीसी, केयर्न व ईआईएल के अधिकारियों के साथ बैठक की थी। खबरचियों के अनुसार बैठक में ईआईएल के प्रतिनिधियों ने कम्प्यूटर प्रस्तुतीकरण के जरिए अपनी 2005 की रिपोर्ट को नए परिप्रेक्ष्य में बताया। इस पर समिति ने कहा कि पेट्रोलियम सैक्टर के मौजूदा परिदृश्य, बाड़मेर में गैस-लिग्नाइट व अन्य सम्भावनाओं, पाइप लाइन की उपलब्धता, तेल विपणन की व्यवस्था तथा सरकारी रियायतों को ध्यान में रख कर ईआईएल पुरानी रिपोर्ट को अपडेट करे। इसके लिए ईआईएल को एक पखवाड़े का समय दिया गया। इस बैठक में समिति के अध्यक्ष एस।सी।त्रिपाठी (सेवानिवृत्त केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव)- अध्यक्ष, एम।बी।लाल (सेवानिवृत्त सीएमडी एचपीसीएल), एम।एस.रामचन्द्रन (पूर्व सीएमडी, आईओसी), मुकेश रोहतगी (सीएमडी, इंजीनियरिंग इण्डिया लिमिटेड), गोविन्द शर्मा (प्रमुख पेट्रोलियम सचिव, राजस्थान), आर.एस.शर्मा (चेयरमैन ओएनजीसी) व संदीप भण्डारी (केयर्न एनर्जी) शामिल थे।
बताया था फायदे का सौदा
वर्ष 2005 की रिपोर्ट में ईआईएल ने बाड़मेर में रिफाइनरी को नफे का सौदा (वायबल) माना था, लेकिन बाद में ओएनजीसी की ओर से एसबीआई कैप्स से करवाई गई स्टडी में इसे घाटे का सौदा बताया गया। ओएनजीसी चेयरमैन आर।एस.शर्मा ने मौका मुआयना करने के लिए अगले माह टीम को बाड़मेर भेजने को कहा है। इसके अलावा समिति शीघ्र ही हाइड्रोकार्बन महानिदेशक से मुलाकात करेगी।

Tuesday, September 29, 2009

फसाद की जड़

हमारे दद्दू कहा करते थे- बिटुवा! दुनिया में सारे फसाद की जड़ें सुसरी जर, जोरू और जमीन से ही निकलती है। दद्दू की बात तो अपन ने मान ही ली थी। फिर जब रामायणजी के पन्ने पलटे तो ये बात सौलह आने सच्ची भी लगी। टीवी पर रूपा गांगुली वाला महाभारत देखकर तो पक्का यकीन हो गया।
बस मियां, अपने-राम ने तो तभी तय कर लिया था कि अब ना तो जर (रुपए-पैसे या धन-सम्पत्ति) के फेर में पड़ेंगे और ना ही जोरू के। रही बात जमीन की, तो वह तो अपने पास कभी होनी ही नहीं।
अरे साहब, आप तो जानते ही हैं कि जमीनों के दाम इन दिनों एवरेस्ट की चोटी छूने की कोशिश में लगे हैं। इसलिए बस, चढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसे में अपन तो क्या भईईईये! अपने फरिश्ते भी इंच भर जमीन खरीदने की हिम्मत नहीं कर सकते। इस तरह अपने-राम मोह-माया से दूर हो गए।
वैसे भी साहब, गीता में लिखा है कि 'नि:स्पृह' यानी किसी में मोह नहीं रखने वाला इंसान ही सही मायने में भगवान का बंदा होता है। ...और अपन तो 'नि:स्पृहों' के भी सरदार!!! इसलिए हम क्या हुए? हें-हें-हें।
खैर, बात वापस वहीं ले आते हैं, जहां से शुरू हुई थी। यानी फसाद की जड़ पर। दरअसल, अपने यहां भी इन दिनों एक फसाद चल रहा है। जर का फसाद। यानी पैसों का पंगा। ...और जब से धोरों ने तेल उगलना शुरू किया है, तब से यह काफी बढ़ गया है।
वैसे, अपने-राम ने तो कुछ महीने पहले ही कह दिया था पूत के पांव पालने में देखकर। ...कि पंगा तो होगा ही। भले ही सूबे की सरकार ने पहल नहीं की और तेल निकालने वाली कम्पनी ने ताल नहीं ठोकी, पर एक राजस्थानी के भीतर का 'तेली' आखिर जाग गया। और वे श्रीमान पहुंच गए सीधे हाईकोर्ट। जाकर बोले- माईबाप! तेल निकालने वालों ने हमसे वादा किया था कि डिलीवरी पॉइन्ट नहीं बदलेंगे, लेकिन अपना नफा देखकर वे बेवफा हो गए। वादे से मुकर गए हुजूर। तेल की डिलीवरी लेकर चल दिए गुजरात और वहां जाकर बोले, अब काहे का वैट? 'वैट' (VAT) के लिए तो 'वेट' (Wait) ही करते रहोगे सारी उम्र। हमने तो तेल राजस्थान से बाहर लाकर बेचा है। ...सो इस पर तो अब CST यानी केन्द्रीय बिक्री कर ही लगेगा।
अपने-राम तो सकते में आ गए। मुख्यमंत्रीजी ने भी इसे सरासर गलत बताया। बोले, इससे तो राजस्थान की झोली में चवन्नी जित्ता ही पैसा आएगा। बाकी तो भाई लोग बोरे में भरकर ले जाएंगे। इसीलिए सीएम साहब ने दिल्ली-सरकार के तेल वाले मंत्रीजी की मिन्नतें की, लेकिन साहब, रहना तो उनको भी दिल्ली में ही। इसलिए यकायक तो कैसे बोलें? आखिर मसला कोई हमारे जैसे गंगू-तेली का तो है नहीं। यह तो मामला भी भारी-भरकम तेली महाराज का। और वो भी ऐसे, जिन पर सात समंदर पार बैठे गोरे आकाओं का हाथ। अरे... नहीं-नहीं। ऐसे ही कुछ थोड़े बोला जाता है? जो भी कहना है, सोच-समझकर ही कहना है। इसलिए दिल्ली वाले मंत्रीजी अभी सोचने की प्रक्रिया में है।
खैर, दिल्ली वालों के सोचने तक कैसे धीरज रखते अपने 'तेली भइया'? इसीलिए वे अदालत को बीच में ले आए हैं। अब मामला न्यायपालिका के हाथ में आ ही गया है, तो हुजूरे-आला! आप भी जानते हैं। कानून का दरवाजा सीधे 'भग्गूजी' के आंगन में ही खुलता है। .... और भगवान के घर देर तो है, लेकिन अंधेर नहीं !!!
- गंगू तेली
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Saturday, September 19, 2009

अदालत पहुंचा केयर्न के तेल का मामला

आखि वही हुआ। अपने राम ने तो चार महीने पहले ही कह दिया था। रबर खींचो, हाथ करीब लाओ, पर भाई-लोग हैं कि मानते ही नहीं। आखिर एक 'राजस्थानी' से रहा ना गया और पहुंच गया अदालत की चौखट पर....।
जी हां। वैट और सीएसटी की लड़ाई अदालत पहुंच ही गई। इसकी चेतावनी तो
केयर्न इण्डिया ने दी थी, लेकिन भाई-लोगों ने तो डिलीवरी पॉइंट बदलने को ही चुनौती दे डाली है।
खबरचियों के मुताबिक, धोरों वाली जमीन यानी बाड़मेर से निकल रहे तेल की बिक्री को लेकर डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर से बदलकर गुजरात के सलाया व अन्य स्थानों पर ले जाने को एक जनहित याचिका के जरिए
राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ में चुनौती दी गई है। इस पर खण्डपीठ के न्यायाधीश एन.पी. गुप्ता व डी.एन. थानवी ने केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव, निदेशक, राजस्थान के मुख्य सचिव, केयर्न एनर्जी इण्डिया एवं राजस्थान के कर आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। याचिका दाखिल की है जोधपुर निवासी अधिवक्ता कैलाश भण्डारी ने। भण्डारी ने अदालत को बताया कि केयर्न एनर्जी (केयर्न इण्डिया की मुख्य कम्पनी) और इससे पहले शेल इण्डिया ने केन्द्र सरकार के साथ अनुबंध में 'राजस्थानी तेल' का आपूर्ति स्थल (डिलीवरी पॉइंट) बाड़मेर में ही रखना तय किया था, लेकिन केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने 30 अप्रेल 08 को डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर के बजाय सलाया (गुजरात) कर दिया। इसमें राज्य सरकार की सहमति भी नहीं ली गई। इससे राज्य सरकार को इस तेल पर 4 प्रतिशत की दर से वैट (Value added tax) नहीं मिल पाएगा। यह बिक्री अंतरराज्यीय बिक्री कहलाएगी और इस पर केवल 1 प्रतिशत की दर से केन्द्रीय बिक्री कर ही प्राप्त होगा। ऐसे में आगामी पांच साल में राजस्थान को करीब 2400 करोड़ रुपए की राजस्व हानि होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि प्राकृतिक गैस नियम 1959 (Petroleum and Natural Gas Rules, 1959) की धारा 5 के मुताबिक राज्य की पूर्व स्वीकृति के बिना केन्द्र सरकार अनुबंध में परिवर्तन नहीं कर सकती है। याचिका में केन्द्र सरकार की ओर 30 अप्रेल 08 को जारी आदेश अपास्त करने तथा तेल का डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर में ही रखे जाने का अनुरोध किया गया।

आप तो जानते ही हैं कि....

वैट और केन्द्रीय बिक्री कर के मुद्दे पर केयर्न इण्डिया और राज्य सरकार के बीच भी इन्हीं कारणों से टसल बनी हुई है। राज्य सरकार जहां इस तेल पर वैट मांग रही है, वहीं केयर्न कम्पनी सीएसटी के लिए अड़ी हुई है। ऐसे में अभी तक राज्य को धेले भर की भी राजस्व आय नहीं हुई है।

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Wednesday, September 16, 2009

शुक्रिया

आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया। आपको PDF उपहार पसंद आया और आपने इसकी सराहना की, इसके लिए गंगू तेली आपका शुक्रगुजार है...। कुछ ब्लॉगर साथियों ने इस तरह की सामग्री नियमित रूप से उपलब्ध करवाते रहने का आग्रह किया है, तो हम अवश्य ही इसके लिए प्रयास करते रहेंगे।
गंगूजी की तेल-मण्डली के अन्य साथियों से भी इसके लिए सहयोग ले रहे हैं, लेकिन जैसा कि कुछ साथी इसे सीधे ब्लॉग पर अटैच करने को कह रहे हैं, तो हमारा निवेदन इतना ही है कि ब्लॉग पर इतनी बड़ी फाइल जोड़ पाना मुश्किल है। गंगू तो आपकी सेवा में हाजिर है ही... आप जब चाहें, चिराग रगड़ दीजिए... बंदा खिदमत में पहुंच जाएगा। फिर भी इसके लिए भी हम कुछ तकनीकी जानकार तेलियों की मदद अवश्य लेंगे और संभव हुआ तो भविष्य में इसे आप तक सीधे ब्लॉग के जरिए ही पहुंचाएंगे। ई-मेल का झंझट नहीं रखेंगे....। ब्लॉग का कलेवर भी जल्द ही कुछ नया और अच्छा करने का प्रयास करेंगे।
रही बात.... गंगू तेली को देश भर की खबरों तक ले जाने की, तो यह बात हमारे मन में भी चल रही है। तेल मण्डली इस ओर प्रयास कर रही है, लेकिन फिलहाल हमारा पूरा फोकस राजस्थान पर ही है। इस पर भी हम रोजाना नहीं लिख रहे। इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि आपको कुछ भी पढ़ाना तो सरासर ना-इंसाफी होगी। जो अच्छा है, उचित है, वही गंगू तेली की जुबानी आप तक पहुंचे, यही सद्भाव है। फिर भी आपको निराश नहीं करेंगे। अपना फलक बढ़ाने की दिशा में भी हमारा प्रयास जारी रहेगा। आपका इतना प्यार मिल रहा है.... शुक्रिया!

Thursday, September 3, 2009

मारवाड़ में 'मंगल-गान'

राजस्थान में 29 अगस्त का सूरज नए युग की शुरुआत का साक्षी बन गया। धरती के गर्भ में करीब डेढ़ हजार मीटर की गहराई पर छुपे खनिज तेल के साथ प्रदेश में खुशियों और खुशहाली की धार भी फूट पड़ी। बाड़मेर के नागाणा स्थित मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल में देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहनसिंह ने मंगला तेल कूप से व्यावसायिक तेल दोहन की शुरुआत की। इस अवसर पर केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, केन्द्रीय मंत्री सी.पी. जोशी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केयर्न इण्डिया के चेयरमैन बिल गैमिल और सीईओ राहुल धीर भी मौजूद थे।
12.34 पर 'मंगल'...
मंगला कुए से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर जैसे ही तेल की पहली बूंद निकली, माहौल अनूठे रोमांच से लबरेज हो गया। लोग जहां तालियां बजाकर खुशी का इजहार कर रहे थे, तो कई आंखें खुशी के मारे छलक आईं। मंगला तेल कूप से निकली पहली बूंद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह को भेंट की गई।
नए युग का आगाज
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि तेल उत्पादन के बाद राजस्थान की गरीबी दूर होगी और खुशहाली तेजी से आएगी। उन्होंने दुनिया के अन्य हिस्सों के पूंजीपतियों को भी भारत में निवेश का आमंत्रण दिया और कहा निवेशकों को हर तरह की सहूलियत देने का विश्वास दिलाया।

हाईलाइट्स

- मंगला में 45-110 करोड़ बैरल तेल भण्डार होने का अनुमान।

- फिलहाल 30 हजार बैरल प्रतिदिन

- 2010 की शुरुआत में 50 हजार बैरल

- 2010 के अन्त तक 75 हजार

- दो साल बाद 1.75 लाख बैरल

- तकनीकी विकास के बाद 2.05 लाख बैरल

- बाड़मेर में पूरी क्षमता का उत्पादन देश के कुल उत्पादन का 20 फीसदी होगा।

- इससे तेल के आयात बिल में 7 फीसदी की बचत होगी।



Monday, August 24, 2009

खुशखबरी : 29 से शुरू होगा तेल दोहन

खुशखबरी... खुशखबरी... खुशखबरी...
आखिर वक्त आ ही गया। स्वागत-सत्कार और खुशियां मनाने का। राजस्थानी तेल के धरती की कोख से बाहर निकलने का दिन बिल्कुल करीब आ गया है। इतना करीब कि हाथ बढ़ाकर छू लो... है ना खुशी की बात...? बाड़मेर में तेल दोहन का उदघाटन करने के लिए खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 29 अगस्त को धोरां-धरती पर आएंगे। बाड़मेर ब्लॉक की ऑपरेटर कम्पनी केयर्न इण्डिया के साथ सुरक्षा एजेंसिंयों व सरकारी स्तर पर तो इस मौके आयोजित होने वाली समारोह की तैयारियां भी तेज हो गई हैं। खबरीलाल के मुताबिक देश के इस सबसे बड़े जमीनी भण्डार से तेल दोहन शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री के बाड़मेर आने का कार्यक्रम तय हो गया है। लिहाजा उनकी सुरक्षा से जुड़ी केन्द्रीय एवं स्थानीय सुरक्षा एजेंसियों को माकूल इंतजाम करने को कहा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय से भी उदघाटन समारोह की रूपरेखा, कार्यक्रम स्थल एवं अन्य व्यवस्थाओं को लेकर केयर्न इण्डिया एवं स्थानीय अधिकारियों से जानकारी जुटाई जा रही है।
आपूर्ति स्थल बदले
इस बीच, केन्द्र सरकार ने खरीदार कम्पनियों की चिंता मिटाते हुए 'राजस्थानी तेल' के आपूर्ति स्थल (डिलीवरी पॉइंट) में बदलाव कर दिया है। सचिवों की एक विशेषाधिकार प्राप्त समिति ने इसकी मंजूरी देते हुए काण्डला बंदरगाह को मैंगलोर रिफाइनरी एण्ड पेट्रोकेमिकल्स (एमआरपीएल) एवं हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड सरीखे खरीदारों के लिए अंतरिम आपूर्ति स्थल तथा गुजरात के भोगत, राधनपुर एवं वीरमगांव को इण्डियन ऑयल कॉरपोरेशन गुजरात के लिए कच्चे तेल का आपूर्ति स्थल तय किया है। बताया जाता है कि आपूर्ति स्थल में यह बदलाव तेल परिवहन पाइप लाइन के पूरा होने तक ही रहेगा।
सरकारी कम्पनियों का पहला हक
सचिवों की इसी समिति ने राजस्थानी तेल पर पहला हक सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों का माना है। समिति ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों की आवश्यकता एवं क्षमता आकलन करने के बाद ही निजी कम्पनियों को तेल बेचने पर विचार किया जा सकता है। आपको तो पता ही है एस्सार और रिलायंस जैसी कम्पनियां भी राजस्थानी तेल की दीवानी है।
7 लाख टन की पैदावार
जानकारों के मुताबिक, सरकार द्वारा नामित तीनों कम्पनियां मिलकर मौजूदा वित्तीय वर्ष में 7 लाख टन कच्चे तेल की खरीद करेंगी, इतना ही तेल शुरुआत में दोहन भी होगा। इसमें एचपीसीएल 3 लाख टन एवं आईओसी व एमआरपीएल 2-2 लाख टन कच्चा खरीदेंगे। सार्वजनिक क्षेत्र की इन कम्पनियों की क्षमता का आकलन कर खरीद में इजाफा किए जाने की योजना है। खरीदार कम्पनियों तक तेल पहुंचाने के लिए शुरुआत में टैंकर्स का इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं, इस साल के आखिर तक तेल पाइपलाइन भी तैयार हो जाएगी।
जल्द हो जाएगा कोसा
तेल खरीद के लिए जहां सार्वजनिक क्षेत्र के तीन खरीदारों के नाम सरकार ने तय कर लिए हैं, वहीं खरीदारों और विक्रेता कम्पनी के बीच क्रूड ऑयल सेल्स एग्रीमेंट (कोसा) की कवायद भी शुरू हो गई है। खबरीलाल के मुताबिक तेल के बिक्री मूल्य पर तो पहले ही सहमति बन गई है। अब दोहन शुरू करने से पहले ही कोसा पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। इसके साथ ही कम्पनी थार से धोरों से तेल निकालने का कार्य शुरू कर देगी। शुरुआत में जहां रोजाना 30 हजार बैरल तेल निकाला जाएगा, वहीं वर्ष 2010 की दूसरी छह माही तक 1 लाख 25 हजार बैरल तेल प्रतिदिन निकलने लगेगा। चरम स्थिति में राजस्थान ब्लॉक से रोजाना 1 लाख 75 हजार बैरल तेल उत्पादित होगा। इसके लिए संचालक कम्पनी केयर्न इण्डिया ने अत्याधुनिक ईओआर तकनीक के इस्तेमाल का भी निर्णय किया है।

Wednesday, August 5, 2009

कहीं 'मामू' तो नहीं बना रहे

राजा भोज अक्सर कहते हैं- रे गंगू, तू भी पूरा 'मामू' है...। कुछ समझता ही नहीं...। दुनियादारी की भी थोड़ी समझ रख बावळे...। और 'अपने-राम' मुस्कुरा कर रह जाते हैं।
पता है? राजाजी तो प्यार से कहते हैं, पर जनाब इन तेल निकालने वालों ने तो हमको सचमुच में ही मूर्ख समझ रखा है। चौथाई साल से तो राजस्थान को ही नहीं पूरे देश को 'मामू' बना रहे हैं।
'भाई-लोगों' ने पहले-पहल बात उछाली कि मई के महीने से थार के धोरे तेल उगलने लगेंगे। यह खबर सुनते ही पप्पू पहलवान से लेकर चंपू चोर तक सब खुश हो गए। अपने बिरादर 'तेलियों' ने भी जमकर तालियां बजाई। करोड़ो आखों ने ख्वाब सजाए और रूखे राजस्थान में 'चिकनाई' का जश्न मनाया गया। 'अपने-राम' तेल निकलने वाली जगह के आसपास में गांव-वालों से बतियाए तो वहां भी लोगों के चेहरे पर नूर नजर आया, लेकिन बात सुसुरी बात ही रह गई। मई के चारों के चारों हफ्ते सूखे गुजर गए। यकीन जानिए सा'ब, सबको बड़ी निराशा हुई। अपने-राम ने भी सोचा कि यार... इस कदर तो सावन भी बेवफाई नहीं करता। भले ही धोरों वाली धरती से उसका पुराना वैर है, पर वार-त्योहार में दो-चार बार तो 'बरखा-रानी' को भेज ही देता है। मगर तेलवालों ने तो झट से 'ठेंगा' दिखा दिया। आखिर अपन ने भी मन को समझाया कि भाई-
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता ॥
बाद में पता चला कि सूबे की सरकार के साथ वैट का मामला अटक गया है। बड़ा भारी रोड़ा है। कम्बखत 'क्रेन' से हटाना पड़ेगा। 'सेटिंग' चल रही है और जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। ...सो, अपन ने तो मास्टर चम्पालाल की पाठशाला में पढऩे वाले तीसरी क्लास के बच्चे की तरह मुंह पर उंगली रख दी। पूरा जून खामोशी में बिता दिया। लोग कहते रहे- जून में तेल दोहन शुरू हो जाएगा। जून आखिर तक तो पक्का। सोलह आना देख लेना। पर महीने बीत गया और हुआ वहीं, जो पिछले महीने में हुआ था। अब 'अपने-राम' ने तेल वालों से पूछा तो बोले- हमने कब कहा था कि मई-जून से तेल निकालेंगे। ये तो भइयै खबरचियों के कयास हैं। हमारा 'टारगेट' तो तीसरी तिमाही से शुरू करने है। अपन ने ऊंची कुर्सियों वालों भी पूछा, लेकिन अपन ठहरे मामूली आदमी। अव्वल तो 'साहब लोगों' ने जवाब ही नहीं दिए। गलती से कुछ बोले भी तो ऐसा घुमा-फिराकर कि उसका अर्थ 'गंगू तेली' तो क्या साक्षात 'राजा भोज' भी नहीं समझ सके। खैर, बातों-बातों में जुलाई का महीना भी लग गया। अबके थोड़ी आस बंधी। लगा कि अब तो 'टारगेट' वाला 'टाइम' भी शुरू हो गया। भाई-लोग कह रहे हैं कि हमने तैयार पूरी कर रखी है। बस 'नल' खोलने भर की देरी है, तो अबकी दफा तो कुछ हो ही जाएगा, लेकिन हुजूरे-आला तीसरी तिमाही का पहला महीना भी ऐसे ही फुर्र हो गया, जैसे बाकी के हुए थे। पर, इसके बाद 'बड़े लोगों' ने अपना लेखा-जोखा शेयर बाजार में सुनाया। रुपयों की जोड़-बाकी गिनाई। तरक्की के ख्वाब दिखाए। तेल निकालने वाली कम्पनी के सबसे बड़े 'बाबूजी' ने राजस्थान से तेल दोहन शुरू करने की मुनादी करवाई और अगस्त का महीना ऐलान कर दिया। 'बाबूजी' गोरे मालिकों की जुबानी बोले-
राजस्थान की धरती से तेल निकालना हमारे लिए मील का पत्थर साबित होगा।
'बाबूजी' की बात सुनकर अपन को भी खूब 'हरष' हुआ, सो बड़े तेलियों से पूछा कि- भाईसा, अगस्त के महीने में तो सुसुरे तीस दिन होवै हैं। अपने हिस्से कौनसा दिन आवैगा? भाईसा ने भी हौले से कहा- देख गंगू, अभी तो अगस्त की बात कही है, पर वैट वाले रोड़े की 'सेटिंग' अभी भी बैठी नहीं है। अब होने को तो इसी महीने में ले-देकर मामला 'फिट' हो जाए, पर ना हुआ तो यह महीना भी सूखा जा सकता है। इसलिए ज्यादा दिमाग मत दौड़ा बावळे...!
फिर कमर पे धौल धरते हुए भाईसा ने खीसें निपोर दीं- हें-हें-हें, तू भी पूरा मामू है रे गंगू। अब आप ही कहिए हुजूर, अपने कहने को क्या रह गया था? सो मामूली आदमी की तरह चुप हो गए। वैसे भी साहब, इन 'कॉरपोरेट' लोगों को 'ऑपरेट' करना अपने-राम को कहां आता है.....
- गंगू तेली
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