Sunday, November 22, 2009

गंगू तेली की जयपुर यात्रा

पिछले दिनों स्नेहा शर्मा ने लिखा- कहां खो गए हो गंगूजी...? यकीनन खो तो नहीं गए थे, पर क्या करते! महीने भर से तो हम अपने में ही नहीं थे। बात ही कुछ ऐसी हो गई। वैसे तो 'अपने राम' बड़ी-बड़ी दार्शनिक बातें करना नहीं जानते। लेकिन यह बात तो जानी-परखी है सो कहे देता हूं- ज़िन्दगी में कई मौके ऐसे भी होते हैं, जब अच्छे-अच्छों का खुद से काबू छूट जाता है। अपने साथ को कई बार ऐसा हुआ।

अम्मा-बाबूजी की बातों में पड़कर अपनी आजादी गवां बैठे। घरवाली तो इसी बात पर ताना भी देती है- "अगर उस समय दिल पर काबू रखा होता, तो आज तुम्हारी बीवी बनकर दु:ख भोगने से तो बच ही जाती।" पर कहां साहब। कभी-कभी दिल की लगाम छूट जाती है। आप सब भी इसे बखूबी समझते होंगे। वैसे, आपके दिल की हमको नहीं मालूम, लेकिन 'अपने राम' तो जयपुर में इण्डियन ऑयल के डिपो में आग लगने के बाद से ही सदमे में थे। बाप रे बाप... क्या आग थी वह। आग लगने के दूसरे ही दिन राजा भोज ने आदेश निकाल दिया- गंगू तेली आग से प्रभावित स्थान का जायजा लेंगे। राजाजी का ऑर्डर कोई टाला जा सकता है भला? सो तब से गंगूजी तो जयपुर में ही डेरा डाले हुए थे। बहुत करीब से देखा सब कुछ। आग भी ससुरी दो हफ्ते तक चली। करोड़ों का तेल धुएं में बदल गया। पहले तो कीमत का पता नहीं था, पर अभी मुरली चाचा ने संसद में बताया कि आग के कारण साढ़े तीन सौ करोड़ का दिवाला पिटा है, तब से तो ब्लड प्रेशर भी आउट ऑफ कंट्रोल हुआ जा रहा है। उन्होंने बताया कि आग में 191 करोड़ रुपए के पेट्रोलियम उत्पाद जलकर नष्ट हो गए तथा आसपास के भवनों और मशीनरी को करीब 160 करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है। तेल डिपो के सभी 11 टैंक पूरी तरह नष्ट हो गए हैं। इस टर्मिनल में आधारभूत ढांचे का पुननिर्माण करने में ही अब दो साल का समय लगेगा।


अपन को तो इस नुकसान के बारे में सुनकर ही अजीब लगता है। सीतापुरा टर्मिनल 1995 में चालू किया गया था। उस समय यह शहर से दूर तथा अलग-थलग था। बाद में सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र बनने के साथ ही इस क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ। नतीजा, आबादी के बीच आ गया यह इलाका। अब अपन को तो समझ ही नहीं आ रहा। किसको दोष दें? बढ़ती आबादी को या तेल वालों को लापरवाही को? खैर, एक बात को पक्की है। होनी को तो कोई टाल नहीं सकता। हालांकि लोग कहते हैं कि ऑयल टेंक का वॉल्व लीक था, पर ससुर के नातियों ने ध्यान ही नहीं दिया। कम्बख्त जब आग भड़की, तभी याद आया इसे दुरुस्त करना। लेकिन एक बार बिगडऩे के बाद तो सुधारना मुश्किल होता ही है। चाहे रिश्ते हों या मशीनें। सो आखिर पूरी तरह बिगड़ ही गया। पूरे जयपुर की सांसों में धुएं का जहर घुल गया। प्रवासी पंछियों तक को लौटना पड़ा। फ्लेमिंगो पक्षियों का कुनबा यह शहर ही छोड़ गया। आग से निकली कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन-डाई-आक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स और सल्फर-डाई-ऑक्साइड्स जैसी गैसों के कारण इन पंछियों को सांस संबंधी दिक्कत और आंखों में जलन हो रही थी।


अपने राम तो इस आग को देखकर सन्न रह गए। कहां तो रेगिस्तान में तेल निकलने की खुशी में बौराए हुए थे, कहां इतना बड़ा नुकसान हो गया। खैर, साहब। अपन तो अब यही कहते हैं कि जो हुआ, सो हुआ। दूसरे तो सबक ले लो। कई जगह पर ऑयल डिपो की स्थितियां इससे भी बुरी है। अगर वे नहीं जागे तो राम ना करे किसी दिन और कुछ घटित हो जाए।


वैसे, आपको बता दूं कि हमारे तेलीबाड़े में एक मजनू घूमता है। पागल-दीवाना। उसके सामने कोई अगर दिल-जिगर या प्यार-मोहब्बत की बात करे तो पत्थर लेकर पीछे दौड़ पड़ता है। कहते हैं उसकी प्रेमिका उसे छोड़कर चली गई थी। इसके बाद से उसे इन अल्फाज से चिढ़ हो गई। तेल वालों के लिए यह मजनू आदर्श होना चाहिए। एक बार नुकसान झेल लिया, अब बार-बार यही करोगे क्या.......?


- गंगू तेली

Sunday, October 25, 2009

कर्जे की माया

हुजूर....! दिवाली की राम-राम। आप भी सोच रहे होंगे, ये गंगू भी कैसा बावळा है! दिवाली गए हफ्ता बीत गया और इसको अब राम-राम करने की सूझी है...। पर साहब आप को क्या बताएं? अपनी दिवाली तो पिछले साल 26 अक्टूबर को ही मनी थी। क्या दिन था वह भी। उम्मीदों से कहीं बढ़कर खुशियां हमारी झोली में आ गिरी और इस साल के फरवरी तक हमारे घर में ही रही। दिल में भी तभी तक दिवाली थी। इसके बाद तो जाने किसकी नजर लग गई। सब कुछ ऐसे काफूर हो गया, जैसे पूजा के कमरे में रखा हुआ कपूर हवा में घुल जाता है। पर सबसे बड़ा फर्क यह था जनाब कि कपूर के कारण घर-आंगन खुशबू से लबरेज हो जाता है, लेकिन यहां तो जाने कैसी-कैसी गंध फैल गई। जून के बाद तो और भी उजाड़ हो गया। आप भी सोच रहे होंगे, ये गंगू आज कैसी उल्टी बातें कर रहा है। पर क्या बताएं हुजूर, कभी-कभी मन पर काबू ही नहीं रहता। ना चाहते हुए भी बहुत कुछ निकल जाता है जुबान से।

खैर, आप लोग तो इस तरफ सौ ग्राम भी भेजा मत खपाइए। अपन तो यूं ही जज्बाती हो गए थे। चलिए, मुद्दे पर लौटते हैं। दरअसल, दिवाली का मौका था तो अपन राजा भोज से मिलने चले गए थे। एकाध दिन पहले ही लौटना हुआ है। वहां गांव के सेठ लाला चम्पकलाल से भी मिलना हो गया।

अपने-राम को देखते ही बोले- क्या रे तेली! दिखता नहीं आजकल? करता क्या है? अपन ने भी टके सा जवाब दे दिया- मौज कर रहा हूं। बस इसी बात पर लालाजी बिगड़ गए। गुर्राते हुए कहने लगे- हां भई, तुम क्यों न करोगे मौज.....? काम ही यही है तुम्हारा तो...। कमाना-धमाना तो है नहीं। बस, ऋण लो और घी पीओ। वैसे भी, दुनिया भर की फाइनेंस कम्पनियां खुल गई हैं तुम्हारे जैसे लोगों के लिए। इसीलिए पट्ठे इधर का रस्ता भी भूल गए हो। वरना हमारे बिना तो धेले जित्ता काम भी ना होता था तुम्हारा।

लालाजी तो ऐसे खीझे जैसे लाखों का कर्जा उठाकर हमने उन्हें ठेंगा दिखा दिया हो। खैर, अपन ने धीरज का बांध टूटने नहीं दिया और पूरा दम लगाकर लालाजी की बात को उखाड़ फेंका- मांई-बाप, आप ही बताओ कर्जा लेकर मौज कौन नहीं करता। बड़े-बड़े धन्ना सेठ भी आजकल यही करते हैं। कार या बंगला लेने के लिए बैग में नोट भरे हो तो भी बैंक से कर्जा लेते हैं। ताकि काली कमाई की पोल जगजाहिर ना हो जाए। और तो और बड़ी-बड़ी कम्पनियों के मालिक भी झट से हाथ फैला लेते हैं। कुछ तो इसमें भी बड़े शातिर होते हैं। धन का जुगाड़ किसी और तरीके से करते हैं और बताते कुछ और हैं। अब देखिए ना...। राजस्थान के सुनहरे धोरों से तेल निकालने वाली कम्पनी ने हाल ही 1.6 अरब की वित्तीय सहायता जुटाई। इसके बाद अखबारों में खबरें छपी कि कम्पनी ने कर्जा लिया है। दूसरे ही दिन अपने राम को पता चला कि कम्पनी ने मलेशिया वालों को हिस्सेदारी बेचकर ये पैसा जुटाया है और मलेशियन कम्पनी इसे अपनी उपलब्धि मानकर बल्लियों उछल रही है। तेली-भाइयों की मानें तो कम्पनी की मलेशिया वालों के साथ भागीदारी तो पहले से थी, पर अब ये 2.3 फीसदी से बढ़कर 14.94 फीसदी तक हो गई है। कहने वाले तो यह भी कह रहे है कि मलेशिया वाली कम्पनी और भागीदारी खरीदने के मूड में है।

अब साहब, अपन तो ठहरे अनपढ़ तेली। दिल के मामले में तो पहले ही फेल हो चुके। अब भला दिमाग के मामले में कहां से पास हो जाने हैं। यानी साहब अपने राम तो सूपर-डूपर 'फेलेश्वरनाथ' हैं। इसीलिए, यकीन जानिए हुजूर... अपने राम को तो यह 'माया' जरा भी समझ नहीं आई। वैसे, इस इलाके के महारथी बताते हैं कि विदेशी माता-पिता की संतान भारतीय कम्पनी के लिए भी यह खुशी की बात है। इस कम्पनी के बड़े अफसर भी खूब राजी हो रहे हैं। वैसे भी, मलेशिया वाली कम्पनी ने तीसरी दफा अपनी भागीदारी बढ़ाई है। खैर, जो भी हो साहब! अपने राम तो सभी के लिए भलाई की दुआ ही करते हैं, पर विनती सिर्फ इतनी है कि हुजूरे-आला हमने जैसा समर्पण दिया है, वैसा ही आप भी दीजिएगा। क्योंकि विश्वास टूटता है तो आवाज नहीं होती, मगर दर्द बहुत होता है.... और हम तो इसे भुगत ही रहे हैं.....।

Sunday, October 11, 2009

केयर्न इंडिया को राजस्थान सरकार का नोटिस

हे भग्गू! इस दुनिया का क्या होगा? इस सवाल के साथ ही अपने राम ने सवेरे अखबार खोला तो पता चला जना कि राजस्थान सरकार ने केयर्न इंडिया को बाड़मेर के तेल कुओं से निकाले गए शुरुआती क्रूड ऑयल पर 2 प्रतिशत सीएसटी ऑनलाइन जमा कराने को लेकर नोटिस दिया है। राज्य सरकार ने कहा है कि क्रूड ऑयल पर जब वैट 4 प्रतिशत बनता है तो फिर 2 प्रतिशत सीएसटी का क्या मतलब है। राज्य सरकार ने केयर्न के इस कदम को चालाकी भरा मानते हुए कंपनी के अधिकारियों से इस बारे में सख्त नाराजगी भी जताई है।
खबरचियों के अनुसार केयर्न ने पहले 1.43 लाख रुपए वाणिज्य कर विभाग में जमा कराने की कोशिश की थी, लेकिन विभाग ने मना कर दिया। इसके बाद केयर्न इंडिया ने 25 सितंबर, 09 को 1.43 लाख रु. वाणिज्य कर विभाग में ऑन लाइन जमा करा दिए हैं। इसे लेकर राज्य और कंपनी के बीच विवाद बढ़ चुका है। राज्य सरकार का कहना है कि तेल का सेल पॉइंट यानी बिक्री केन्द्र राजस्थान में है, तो आधा टैक्स किस आधार पर जमा कराया गया है।

300 करोड़ का नुकसान

बात यह है भाई साहब कि केयर्न के ऐसा करने से राजस्थान की सरकार को करीब 300 करोड़ रुपये का सालाना नुकसान होगा। मंगला क्षेत्र से निकलने वाले क्रूड ऑयल पर तीस साल की अवधि में 16000 करोड़ रुपये वैट के रूप में मिलने की संभावना है। इस प्रकार औसतन चार से पांच सौ करोड़ रुपए प्रति साल मिल सकते हैं। अगर दो प्रतिशत सीएसटी के हिसाब से ही टैक्स मिला तो राज्य को सीधा सीधा ढाई सौ से तीन सौ करोड़ रुपए हर साल की नुकसान होने की संभावना है। कंपनी के उच्चतम क्षमता (डेढ़ लाख बैरल प्रतिदिन) पर उत्पादन होने की दशा में राज्य को यह नुकसान और भी ज्यादा हो सकता है।


पहली बार मंगलौर पहुंचा 'राजस्थानी तेल'

थार के धोरों से निकल रहे कच्चे तेल की पहली खेप शोधन के लिए शुक्रवार को ओएनजीसी की मंगलौर रिफाइनरी पहुंच गई। 2 लाख 8 हजार बैरल (29 हजार टन) की यहपहली खेप बाड़मेर से टैंकर्स के जरिए गुजरात के काण्डला बंदरगाह तक पहुंचाई गई थी। यहीं पर क्रूड ऑयल को स्टोर किया गया। अब इसे शोधन के लिए पहुंचाया गया है। बाड़मेर में तेल दोहन की शुरूआत गत 29 अगस्त को हुई थी। इधर, मंगलौर रिफाइनरी एवं पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (एमआरपीएल) ने पहले ही दिन से राजस्थानी तेल के शोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। रिफाइनरी तक जलमार्ग से यह तेल पहुंचाया गया है। कच्चे तेल के पहले मालवाहक जहाज का मंगलौर में ओएनजीसी, एमआरपीएल, केयर्न इण्डिया एवं स्थानीय प्रशासन ने स्वागत किया।

फिर से अव्वल
यह तीसरा मौका है जब एमआरपीएल को किसी जगह से उत्पादित तेल शोधन के लिए पहले पहल नामित किया गया हो। इससे पहले वर्ष 2003 में सुडान तथा वर्ष 2006 में रूस के तेल क्षेत्रों से निकले तेल की पहली खेप भी शोधन के लिए यहीं पहुंची थी।

राजस्थान में रिफाइनरी की आस

रिफाइनरी का सपना देखने वालों के लिए एक और अच्छी ख़बर है। चार साल पहले राजस्थान में रिफाइनरी की आस जगाने वाली इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड (ईआईएल) अब नए सिरे से प्रदेश में रिफाइनरी की "प्रबल सम्भावना" का रास्ता तलाशेगी। इसके लिए ईआईएल को मौजूदा वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जल्दी से जल्दी पुरानी स्टडी रिपोर्ट अपडेट करने के लिए कहा गया है। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ओएनजीसी) के चेयरमैन आर.एस.शर्मा की मौजूदगी में हाल ही दिल्ली में हुई उच्चाधिकार समिति की बैठक में यह निर्णय किया गया है। पूर्व केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव एस.सी.त्रिपाठी की अध्यक्षता में राज्य सरकार की ओर से गठित उच्चाधिकार समिति ने इसके लिए ओएनजीसी, केयर्न व ईआईएल के अधिकारियों के साथ बैठक की थी। खबरचियों के अनुसार बैठक में ईआईएल के प्रतिनिधियों ने कम्प्यूटर प्रस्तुतीकरण के जरिए अपनी 2005 की रिपोर्ट को नए परिप्रेक्ष्य में बताया। इस पर समिति ने कहा कि पेट्रोलियम सैक्टर के मौजूदा परिदृश्य, बाड़मेर में गैस-लिग्नाइट व अन्य सम्भावनाओं, पाइप लाइन की उपलब्धता, तेल विपणन की व्यवस्था तथा सरकारी रियायतों को ध्यान में रख कर ईआईएल पुरानी रिपोर्ट को अपडेट करे। इसके लिए ईआईएल को एक पखवाड़े का समय दिया गया। इस बैठक में समिति के अध्यक्ष एस।सी।त्रिपाठी (सेवानिवृत्त केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव)- अध्यक्ष, एम।बी।लाल (सेवानिवृत्त सीएमडी एचपीसीएल), एम।एस.रामचन्द्रन (पूर्व सीएमडी, आईओसी), मुकेश रोहतगी (सीएमडी, इंजीनियरिंग इण्डिया लिमिटेड), गोविन्द शर्मा (प्रमुख पेट्रोलियम सचिव, राजस्थान), आर.एस.शर्मा (चेयरमैन ओएनजीसी) व संदीप भण्डारी (केयर्न एनर्जी) शामिल थे।
बताया था फायदे का सौदा
वर्ष 2005 की रिपोर्ट में ईआईएल ने बाड़मेर में रिफाइनरी को नफे का सौदा (वायबल) माना था, लेकिन बाद में ओएनजीसी की ओर से एसबीआई कैप्स से करवाई गई स्टडी में इसे घाटे का सौदा बताया गया। ओएनजीसी चेयरमैन आर।एस.शर्मा ने मौका मुआयना करने के लिए अगले माह टीम को बाड़मेर भेजने को कहा है। इसके अलावा समिति शीघ्र ही हाइड्रोकार्बन महानिदेशक से मुलाकात करेगी।

Tuesday, September 29, 2009

फसाद की जड़

हमारे दद्दू कहा करते थे- बिटुवा! दुनिया में सारे फसाद की जड़ें सुसरी जर, जोरू और जमीन से ही निकलती है। दद्दू की बात तो अपन ने मान ही ली थी। फिर जब रामायणजी के पन्ने पलटे तो ये बात सौलह आने सच्ची भी लगी। टीवी पर रूपा गांगुली वाला महाभारत देखकर तो पक्का यकीन हो गया।
बस मियां, अपने-राम ने तो तभी तय कर लिया था कि अब ना तो जर (रुपए-पैसे या धन-सम्पत्ति) के फेर में पड़ेंगे और ना ही जोरू के। रही बात जमीन की, तो वह तो अपने पास कभी होनी ही नहीं।
अरे साहब, आप तो जानते ही हैं कि जमीनों के दाम इन दिनों एवरेस्ट की चोटी छूने की कोशिश में लगे हैं। इसलिए बस, चढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसे में अपन तो क्या भईईईये! अपने फरिश्ते भी इंच भर जमीन खरीदने की हिम्मत नहीं कर सकते। इस तरह अपने-राम मोह-माया से दूर हो गए।
वैसे भी साहब, गीता में लिखा है कि 'नि:स्पृह' यानी किसी में मोह नहीं रखने वाला इंसान ही सही मायने में भगवान का बंदा होता है। ...और अपन तो 'नि:स्पृहों' के भी सरदार!!! इसलिए हम क्या हुए? हें-हें-हें।
खैर, बात वापस वहीं ले आते हैं, जहां से शुरू हुई थी। यानी फसाद की जड़ पर। दरअसल, अपने यहां भी इन दिनों एक फसाद चल रहा है। जर का फसाद। यानी पैसों का पंगा। ...और जब से धोरों ने तेल उगलना शुरू किया है, तब से यह काफी बढ़ गया है।
वैसे, अपने-राम ने तो कुछ महीने पहले ही कह दिया था पूत के पांव पालने में देखकर। ...कि पंगा तो होगा ही। भले ही सूबे की सरकार ने पहल नहीं की और तेल निकालने वाली कम्पनी ने ताल नहीं ठोकी, पर एक राजस्थानी के भीतर का 'तेली' आखिर जाग गया। और वे श्रीमान पहुंच गए सीधे हाईकोर्ट। जाकर बोले- माईबाप! तेल निकालने वालों ने हमसे वादा किया था कि डिलीवरी पॉइन्ट नहीं बदलेंगे, लेकिन अपना नफा देखकर वे बेवफा हो गए। वादे से मुकर गए हुजूर। तेल की डिलीवरी लेकर चल दिए गुजरात और वहां जाकर बोले, अब काहे का वैट? 'वैट' (VAT) के लिए तो 'वेट' (Wait) ही करते रहोगे सारी उम्र। हमने तो तेल राजस्थान से बाहर लाकर बेचा है। ...सो इस पर तो अब CST यानी केन्द्रीय बिक्री कर ही लगेगा।
अपने-राम तो सकते में आ गए। मुख्यमंत्रीजी ने भी इसे सरासर गलत बताया। बोले, इससे तो राजस्थान की झोली में चवन्नी जित्ता ही पैसा आएगा। बाकी तो भाई लोग बोरे में भरकर ले जाएंगे। इसीलिए सीएम साहब ने दिल्ली-सरकार के तेल वाले मंत्रीजी की मिन्नतें की, लेकिन साहब, रहना तो उनको भी दिल्ली में ही। इसलिए यकायक तो कैसे बोलें? आखिर मसला कोई हमारे जैसे गंगू-तेली का तो है नहीं। यह तो मामला भी भारी-भरकम तेली महाराज का। और वो भी ऐसे, जिन पर सात समंदर पार बैठे गोरे आकाओं का हाथ। अरे... नहीं-नहीं। ऐसे ही कुछ थोड़े बोला जाता है? जो भी कहना है, सोच-समझकर ही कहना है। इसलिए दिल्ली वाले मंत्रीजी अभी सोचने की प्रक्रिया में है।
खैर, दिल्ली वालों के सोचने तक कैसे धीरज रखते अपने 'तेली भइया'? इसीलिए वे अदालत को बीच में ले आए हैं। अब मामला न्यायपालिका के हाथ में आ ही गया है, तो हुजूरे-आला! आप भी जानते हैं। कानून का दरवाजा सीधे 'भग्गूजी' के आंगन में ही खुलता है। .... और भगवान के घर देर तो है, लेकिन अंधेर नहीं !!!
- गंगू तेली
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Saturday, September 19, 2009

अदालत पहुंचा केयर्न के तेल का मामला

आखि वही हुआ। अपने राम ने तो चार महीने पहले ही कह दिया था। रबर खींचो, हाथ करीब लाओ, पर भाई-लोग हैं कि मानते ही नहीं। आखिर एक 'राजस्थानी' से रहा ना गया और पहुंच गया अदालत की चौखट पर....।
जी हां। वैट और सीएसटी की लड़ाई अदालत पहुंच ही गई। इसकी चेतावनी तो
केयर्न इण्डिया ने दी थी, लेकिन भाई-लोगों ने तो डिलीवरी पॉइंट बदलने को ही चुनौती दे डाली है।
खबरचियों के मुताबिक, धोरों वाली जमीन यानी बाड़मेर से निकल रहे तेल की बिक्री को लेकर डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर से बदलकर गुजरात के सलाया व अन्य स्थानों पर ले जाने को एक जनहित याचिका के जरिए
राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ में चुनौती दी गई है। इस पर खण्डपीठ के न्यायाधीश एन.पी. गुप्ता व डी.एन. थानवी ने केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव, निदेशक, राजस्थान के मुख्य सचिव, केयर्न एनर्जी इण्डिया एवं राजस्थान के कर आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। याचिका दाखिल की है जोधपुर निवासी अधिवक्ता कैलाश भण्डारी ने। भण्डारी ने अदालत को बताया कि केयर्न एनर्जी (केयर्न इण्डिया की मुख्य कम्पनी) और इससे पहले शेल इण्डिया ने केन्द्र सरकार के साथ अनुबंध में 'राजस्थानी तेल' का आपूर्ति स्थल (डिलीवरी पॉइंट) बाड़मेर में ही रखना तय किया था, लेकिन केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने 30 अप्रेल 08 को डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर के बजाय सलाया (गुजरात) कर दिया। इसमें राज्य सरकार की सहमति भी नहीं ली गई। इससे राज्य सरकार को इस तेल पर 4 प्रतिशत की दर से वैट (Value added tax) नहीं मिल पाएगा। यह बिक्री अंतरराज्यीय बिक्री कहलाएगी और इस पर केवल 1 प्रतिशत की दर से केन्द्रीय बिक्री कर ही प्राप्त होगा। ऐसे में आगामी पांच साल में राजस्थान को करीब 2400 करोड़ रुपए की राजस्व हानि होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि प्राकृतिक गैस नियम 1959 (Petroleum and Natural Gas Rules, 1959) की धारा 5 के मुताबिक राज्य की पूर्व स्वीकृति के बिना केन्द्र सरकार अनुबंध में परिवर्तन नहीं कर सकती है। याचिका में केन्द्र सरकार की ओर 30 अप्रेल 08 को जारी आदेश अपास्त करने तथा तेल का डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर में ही रखे जाने का अनुरोध किया गया।

आप तो जानते ही हैं कि....

वैट और केन्द्रीय बिक्री कर के मुद्दे पर केयर्न इण्डिया और राज्य सरकार के बीच भी इन्हीं कारणों से टसल बनी हुई है। राज्य सरकार जहां इस तेल पर वैट मांग रही है, वहीं केयर्न कम्पनी सीएसटी के लिए अड़ी हुई है। ऐसे में अभी तक राज्य को धेले भर की भी राजस्व आय नहीं हुई है।

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Wednesday, September 16, 2009

शुक्रिया

आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया। आपको PDF उपहार पसंद आया और आपने इसकी सराहना की, इसके लिए गंगू तेली आपका शुक्रगुजार है...। कुछ ब्लॉगर साथियों ने इस तरह की सामग्री नियमित रूप से उपलब्ध करवाते रहने का आग्रह किया है, तो हम अवश्य ही इसके लिए प्रयास करते रहेंगे।
गंगूजी की तेल-मण्डली के अन्य साथियों से भी इसके लिए सहयोग ले रहे हैं, लेकिन जैसा कि कुछ साथी इसे सीधे ब्लॉग पर अटैच करने को कह रहे हैं, तो हमारा निवेदन इतना ही है कि ब्लॉग पर इतनी बड़ी फाइल जोड़ पाना मुश्किल है। गंगू तो आपकी सेवा में हाजिर है ही... आप जब चाहें, चिराग रगड़ दीजिए... बंदा खिदमत में पहुंच जाएगा। फिर भी इसके लिए भी हम कुछ तकनीकी जानकार तेलियों की मदद अवश्य लेंगे और संभव हुआ तो भविष्य में इसे आप तक सीधे ब्लॉग के जरिए ही पहुंचाएंगे। ई-मेल का झंझट नहीं रखेंगे....। ब्लॉग का कलेवर भी जल्द ही कुछ नया और अच्छा करने का प्रयास करेंगे।
रही बात.... गंगू तेली को देश भर की खबरों तक ले जाने की, तो यह बात हमारे मन में भी चल रही है। तेल मण्डली इस ओर प्रयास कर रही है, लेकिन फिलहाल हमारा पूरा फोकस राजस्थान पर ही है। इस पर भी हम रोजाना नहीं लिख रहे। इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि आपको कुछ भी पढ़ाना तो सरासर ना-इंसाफी होगी। जो अच्छा है, उचित है, वही गंगू तेली की जुबानी आप तक पहुंचे, यही सद्भाव है। फिर भी आपको निराश नहीं करेंगे। अपना फलक बढ़ाने की दिशा में भी हमारा प्रयास जारी रहेगा। आपका इतना प्यार मिल रहा है.... शुक्रिया!

Thursday, September 3, 2009

मारवाड़ में 'मंगल-गान'

राजस्थान में 29 अगस्त का सूरज नए युग की शुरुआत का साक्षी बन गया। धरती के गर्भ में करीब डेढ़ हजार मीटर की गहराई पर छुपे खनिज तेल के साथ प्रदेश में खुशियों और खुशहाली की धार भी फूट पड़ी। बाड़मेर के नागाणा स्थित मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल में देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहनसिंह ने मंगला तेल कूप से व्यावसायिक तेल दोहन की शुरुआत की। इस अवसर पर केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, केन्द्रीय मंत्री सी.पी. जोशी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केयर्न इण्डिया के चेयरमैन बिल गैमिल और सीईओ राहुल धीर भी मौजूद थे।
12.34 पर 'मंगल'...
मंगला कुए से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर जैसे ही तेल की पहली बूंद निकली, माहौल अनूठे रोमांच से लबरेज हो गया। लोग जहां तालियां बजाकर खुशी का इजहार कर रहे थे, तो कई आंखें खुशी के मारे छलक आईं। मंगला तेल कूप से निकली पहली बूंद प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह को भेंट की गई।
नए युग का आगाज
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि तेल उत्पादन के बाद राजस्थान की गरीबी दूर होगी और खुशहाली तेजी से आएगी। उन्होंने दुनिया के अन्य हिस्सों के पूंजीपतियों को भी भारत में निवेश का आमंत्रण दिया और कहा निवेशकों को हर तरह की सहूलियत देने का विश्वास दिलाया।

हाईलाइट्स

- मंगला में 45-110 करोड़ बैरल तेल भण्डार होने का अनुमान।

- फिलहाल 30 हजार बैरल प्रतिदिन

- 2010 की शुरुआत में 50 हजार बैरल

- 2010 के अन्त तक 75 हजार

- दो साल बाद 1.75 लाख बैरल

- तकनीकी विकास के बाद 2.05 लाख बैरल

- बाड़मेर में पूरी क्षमता का उत्पादन देश के कुल उत्पादन का 20 फीसदी होगा।

- इससे तेल के आयात बिल में 7 फीसदी की बचत होगी।



Monday, August 24, 2009

खुशखबरी : 29 से शुरू होगा तेल दोहन

खुशखबरी... खुशखबरी... खुशखबरी...
आखिर वक्त आ ही गया। स्वागत-सत्कार और खुशियां मनाने का। राजस्थानी तेल के धरती की कोख से बाहर निकलने का दिन बिल्कुल करीब आ गया है। इतना करीब कि हाथ बढ़ाकर छू लो... है ना खुशी की बात...? बाड़मेर में तेल दोहन का उदघाटन करने के लिए खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 29 अगस्त को धोरां-धरती पर आएंगे। बाड़मेर ब्लॉक की ऑपरेटर कम्पनी केयर्न इण्डिया के साथ सुरक्षा एजेंसिंयों व सरकारी स्तर पर तो इस मौके आयोजित होने वाली समारोह की तैयारियां भी तेज हो गई हैं। खबरीलाल के मुताबिक देश के इस सबसे बड़े जमीनी भण्डार से तेल दोहन शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री के बाड़मेर आने का कार्यक्रम तय हो गया है। लिहाजा उनकी सुरक्षा से जुड़ी केन्द्रीय एवं स्थानीय सुरक्षा एजेंसियों को माकूल इंतजाम करने को कहा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय से भी उदघाटन समारोह की रूपरेखा, कार्यक्रम स्थल एवं अन्य व्यवस्थाओं को लेकर केयर्न इण्डिया एवं स्थानीय अधिकारियों से जानकारी जुटाई जा रही है।
आपूर्ति स्थल बदले
इस बीच, केन्द्र सरकार ने खरीदार कम्पनियों की चिंता मिटाते हुए 'राजस्थानी तेल' के आपूर्ति स्थल (डिलीवरी पॉइंट) में बदलाव कर दिया है। सचिवों की एक विशेषाधिकार प्राप्त समिति ने इसकी मंजूरी देते हुए काण्डला बंदरगाह को मैंगलोर रिफाइनरी एण्ड पेट्रोकेमिकल्स (एमआरपीएल) एवं हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड सरीखे खरीदारों के लिए अंतरिम आपूर्ति स्थल तथा गुजरात के भोगत, राधनपुर एवं वीरमगांव को इण्डियन ऑयल कॉरपोरेशन गुजरात के लिए कच्चे तेल का आपूर्ति स्थल तय किया है। बताया जाता है कि आपूर्ति स्थल में यह बदलाव तेल परिवहन पाइप लाइन के पूरा होने तक ही रहेगा।
सरकारी कम्पनियों का पहला हक
सचिवों की इसी समिति ने राजस्थानी तेल पर पहला हक सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों का माना है। समिति ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों की आवश्यकता एवं क्षमता आकलन करने के बाद ही निजी कम्पनियों को तेल बेचने पर विचार किया जा सकता है। आपको तो पता ही है एस्सार और रिलायंस जैसी कम्पनियां भी राजस्थानी तेल की दीवानी है।
7 लाख टन की पैदावार
जानकारों के मुताबिक, सरकार द्वारा नामित तीनों कम्पनियां मिलकर मौजूदा वित्तीय वर्ष में 7 लाख टन कच्चे तेल की खरीद करेंगी, इतना ही तेल शुरुआत में दोहन भी होगा। इसमें एचपीसीएल 3 लाख टन एवं आईओसी व एमआरपीएल 2-2 लाख टन कच्चा खरीदेंगे। सार्वजनिक क्षेत्र की इन कम्पनियों की क्षमता का आकलन कर खरीद में इजाफा किए जाने की योजना है। खरीदार कम्पनियों तक तेल पहुंचाने के लिए शुरुआत में टैंकर्स का इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं, इस साल के आखिर तक तेल पाइपलाइन भी तैयार हो जाएगी।
जल्द हो जाएगा कोसा
तेल खरीद के लिए जहां सार्वजनिक क्षेत्र के तीन खरीदारों के नाम सरकार ने तय कर लिए हैं, वहीं खरीदारों और विक्रेता कम्पनी के बीच क्रूड ऑयल सेल्स एग्रीमेंट (कोसा) की कवायद भी शुरू हो गई है। खबरीलाल के मुताबिक तेल के बिक्री मूल्य पर तो पहले ही सहमति बन गई है। अब दोहन शुरू करने से पहले ही कोसा पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। इसके साथ ही कम्पनी थार से धोरों से तेल निकालने का कार्य शुरू कर देगी। शुरुआत में जहां रोजाना 30 हजार बैरल तेल निकाला जाएगा, वहीं वर्ष 2010 की दूसरी छह माही तक 1 लाख 25 हजार बैरल तेल प्रतिदिन निकलने लगेगा। चरम स्थिति में राजस्थान ब्लॉक से रोजाना 1 लाख 75 हजार बैरल तेल उत्पादित होगा। इसके लिए संचालक कम्पनी केयर्न इण्डिया ने अत्याधुनिक ईओआर तकनीक के इस्तेमाल का भी निर्णय किया है।

Wednesday, August 5, 2009

कहीं 'मामू' तो नहीं बना रहे

राजा भोज अक्सर कहते हैं- रे गंगू, तू भी पूरा 'मामू' है...। कुछ समझता ही नहीं...। दुनियादारी की भी थोड़ी समझ रख बावळे...। और 'अपने-राम' मुस्कुरा कर रह जाते हैं।
पता है? राजाजी तो प्यार से कहते हैं, पर जनाब इन तेल निकालने वालों ने तो हमको सचमुच में ही मूर्ख समझ रखा है। चौथाई साल से तो राजस्थान को ही नहीं पूरे देश को 'मामू' बना रहे हैं।
'भाई-लोगों' ने पहले-पहल बात उछाली कि मई के महीने से थार के धोरे तेल उगलने लगेंगे। यह खबर सुनते ही पप्पू पहलवान से लेकर चंपू चोर तक सब खुश हो गए। अपने बिरादर 'तेलियों' ने भी जमकर तालियां बजाई। करोड़ो आखों ने ख्वाब सजाए और रूखे राजस्थान में 'चिकनाई' का जश्न मनाया गया। 'अपने-राम' तेल निकलने वाली जगह के आसपास में गांव-वालों से बतियाए तो वहां भी लोगों के चेहरे पर नूर नजर आया, लेकिन बात सुसुरी बात ही रह गई। मई के चारों के चारों हफ्ते सूखे गुजर गए। यकीन जानिए सा'ब, सबको बड़ी निराशा हुई। अपने-राम ने भी सोचा कि यार... इस कदर तो सावन भी बेवफाई नहीं करता। भले ही धोरों वाली धरती से उसका पुराना वैर है, पर वार-त्योहार में दो-चार बार तो 'बरखा-रानी' को भेज ही देता है। मगर तेलवालों ने तो झट से 'ठेंगा' दिखा दिया। आखिर अपन ने भी मन को समझाया कि भाई-
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता ॥
बाद में पता चला कि सूबे की सरकार के साथ वैट का मामला अटक गया है। बड़ा भारी रोड़ा है। कम्बखत 'क्रेन' से हटाना पड़ेगा। 'सेटिंग' चल रही है और जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। ...सो, अपन ने तो मास्टर चम्पालाल की पाठशाला में पढऩे वाले तीसरी क्लास के बच्चे की तरह मुंह पर उंगली रख दी। पूरा जून खामोशी में बिता दिया। लोग कहते रहे- जून में तेल दोहन शुरू हो जाएगा। जून आखिर तक तो पक्का। सोलह आना देख लेना। पर महीने बीत गया और हुआ वहीं, जो पिछले महीने में हुआ था। अब 'अपने-राम' ने तेल वालों से पूछा तो बोले- हमने कब कहा था कि मई-जून से तेल निकालेंगे। ये तो भइयै खबरचियों के कयास हैं। हमारा 'टारगेट' तो तीसरी तिमाही से शुरू करने है। अपन ने ऊंची कुर्सियों वालों भी पूछा, लेकिन अपन ठहरे मामूली आदमी। अव्वल तो 'साहब लोगों' ने जवाब ही नहीं दिए। गलती से कुछ बोले भी तो ऐसा घुमा-फिराकर कि उसका अर्थ 'गंगू तेली' तो क्या साक्षात 'राजा भोज' भी नहीं समझ सके। खैर, बातों-बातों में जुलाई का महीना भी लग गया। अबके थोड़ी आस बंधी। लगा कि अब तो 'टारगेट' वाला 'टाइम' भी शुरू हो गया। भाई-लोग कह रहे हैं कि हमने तैयार पूरी कर रखी है। बस 'नल' खोलने भर की देरी है, तो अबकी दफा तो कुछ हो ही जाएगा, लेकिन हुजूरे-आला तीसरी तिमाही का पहला महीना भी ऐसे ही फुर्र हो गया, जैसे बाकी के हुए थे। पर, इसके बाद 'बड़े लोगों' ने अपना लेखा-जोखा शेयर बाजार में सुनाया। रुपयों की जोड़-बाकी गिनाई। तरक्की के ख्वाब दिखाए। तेल निकालने वाली कम्पनी के सबसे बड़े 'बाबूजी' ने राजस्थान से तेल दोहन शुरू करने की मुनादी करवाई और अगस्त का महीना ऐलान कर दिया। 'बाबूजी' गोरे मालिकों की जुबानी बोले-
राजस्थान की धरती से तेल निकालना हमारे लिए मील का पत्थर साबित होगा।
'बाबूजी' की बात सुनकर अपन को भी खूब 'हरष' हुआ, सो बड़े तेलियों से पूछा कि- भाईसा, अगस्त के महीने में तो सुसुरे तीस दिन होवै हैं। अपने हिस्से कौनसा दिन आवैगा? भाईसा ने भी हौले से कहा- देख गंगू, अभी तो अगस्त की बात कही है, पर वैट वाले रोड़े की 'सेटिंग' अभी भी बैठी नहीं है। अब होने को तो इसी महीने में ले-देकर मामला 'फिट' हो जाए, पर ना हुआ तो यह महीना भी सूखा जा सकता है। इसलिए ज्यादा दिमाग मत दौड़ा बावळे...!
फिर कमर पे धौल धरते हुए भाईसा ने खीसें निपोर दीं- हें-हें-हें, तू भी पूरा मामू है रे गंगू। अब आप ही कहिए हुजूर, अपने कहने को क्या रह गया था? सो मामूली आदमी की तरह चुप हो गए। वैसे भी साहब, इन 'कॉरपोरेट' लोगों को 'ऑपरेट' करना अपने-राम को कहां आता है.....
- गंगू तेली

Tuesday, August 4, 2009

'तेल की नौकरी' में ठगी का खेल!!!

'भोज राजा' अक्सर हमसे कहा करते हैं- गंगू ये दुनिया बड़ी धोखेबाज है। लोग ऐसे रंग बदलते हैं कि गिरकिट भी शरमा जाए। तू ऐसे लोगों से सम्भलकर रहना...। मगर अपने-राम भी सोचते थे कि अगर हम किसी के साथ अच्छा करेंगे, तो कौन कम्बख्त हमको छलेगा, लेकिन अभी-अभी अखबारों में खबरें देखी तो माथा भन्ना गया। धोखेबाजों की जमात तो अपनी 'तेल नगरिया' तक भी पहुंच गई है।
दो रोज पहले राजस्थान के एक बड़े अखबार राजस्थान पत्रिका में खबर छपी- 'तेल की नौकरी' में ठगी का खेल!!! खबरचियों ने लिखा कि :-
अगर आप किसी नामी तेल-गैस कम्पनी से नौकरी का बुलावा पाकर खुश हैं, तो संभल जाइए। यह प्रस्ताव किसी बड़ी ठगी का हिस्सा भी हो सकता है। तेल-गैस उत्पादन में प्रगति के साथ ही इस क्षेत्र में नौकरी का झांसा देकर रुपए ऐंठने वाला गिरोह भी सक्रिय हो गया है। विदेशी धरती पर बैठे इस गिरोह के सरगना इंटरनेट के जरिए पूरे देश में जड़ें फैला रहे हैं। मारवाड़ तक भी इनकी पहुंच हो चुकी है। राहत की बात यह है कि फिलहाल इनके झांसे में फंसने का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन जोधपुर सहित संभाग के बाड़मेर एवं जालोर जिले में कई युवाओं को ऐसे फर्जी बुलावा पत्र (कॉल लैटर्स) एवं अनुबंध पत्र (कॉन्ट्रैक्ट लैटर) ईमेल से मिले हैं।
बड़ी तनख्वाह का झांसा
ई-मेल के जरिए नियुक्ति पत्र भेजने वाली ये कम्पनियां बड़ी तनख्वाह का लालच देकर युवाओं को फांस लेती हैं। एक युवक को मिले ऑफर लैटर में सेल्स मैनेजर पद के लिए 9500 पाउंड (तकरीबन साढ़े सात लाख रुपए) मासिक वेतन का प्रस्ताव दिया गया है। इसके अलावा भारत से ब्रिटेन आने-जाने का खर्च, रहने की व्यवस्था एवं अत्याधुनिक लैपटॉप सहित अन्य फायदे भी गिनाए गए हैं।
'शेल' के नाम का इस्तेमाल
ज्यादातर ऑफर लैटर लंदन (यूके) की शेल ऑयल कम्पनी के नाम से भेजे जा रहे हैं, लेकिन इनमें कम्पनी का पता, ई-मेल एवं फोन नम्बर फर्जी हैं। शेल की भारतीय इकाई शेल इण्डिया ने भी नौकरी के इन प्रस्तावों को पूरी तरह झूठा करार दिया है। उनका कहना है कि- 'हम किसी तरह की नियुक्ति या प्रशिक्षण के लिए पैसे नहीं मांगते तथा नियुक्ति प्रक्रिया भी अलग है। यदि कोई शेल के नाम से नियुक्ति पत्र भेजकर पैसा मंगवाता है, तो इन्हें व्यक्तिगत जानकारी नहीं दें और तत्काल पुलिस को सूचित करें।' कम्पनी ने अपनी अधिकृत वेबसाइट पर भी इसका खुलासा कर दिया है।
ऐसे लेते हैं झांसे में...
रोजगार मुहैया करवाने वाली वेबसाइट्स से ई-मेल पते जुटाकर ये कम्पनियां आवेदकों से बायोडाटा मंगवाती हैं। महीने भर बाद आवेदक को ऑफर लैटर व कॉन्ट्रैक्ट लैटर भेजा जाता है। इसमें आवेदक को यह भी बता दिया जाता है कि वर्क परमिट एवं वीजा का खर्चा उसे खुद उठाना होगा। अगर कोई आवेदक कॉन्ट्रैक्ट लैटर पर हस्ताक्षर कर भेज देता है, तो उससे 50 हजार रुपए से एक लाख रुपए तक की मांग की जाती है।

Thursday, July 30, 2009

अगस्त में निकलेगा तेल

पूछिए मत जनाब! आज तो हमने पूरा एक किलो कलाकंद खाया। क्या करें, खुशी ही कुछ ऎसी है। सुबह आंख खुलते ही एक तेली ने सूचना दी। बोले- आपको पता भी है कि नहीं आज तो अखबार वालों ने जोरदार खबर दी है।
लिखते हैं कि- थार के धोरों से तेल उत्पादन की बाधाएं अब कुछ दूर होती दिख रही है। तेल अन्वेषक केयर्न इण्डिया ने इण्डियन ऑयल कॉरपोरेशन एवं ओएनजीसी की मंगलौर रिफाइनरी एवं पेट्राकेमिकल्स लिमिटेड के साथ तेल के बिक्री मूल्य पर हाथ मिला लिया है। वहीं, कम्पनी ने अगले महीने बाड़मेर से तेल दोहन शुरू करने का ऐलान किया है। केयर्न इण्डिया ने चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के नतीजे जारी करते हुए बुधवार को यह घोषणा की। यह पहला मौका है जब कम्पनी ने आधिकारिक रूप से इसका ऐलान किया है। केयर्न अब तक वर्ष 2009 की तिसरी तिमाही से तेल उत्पादन शुरू करने की बात ही कहती रही है। कम्पनी की इस घोषणा को राज्य में वैट को लेकर सरकार से चल रहे गतिरोध के मामले में भी सुलह के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।


तैयारी तो पूरी है ही....



कंपनी वाले तो पहले ही कह चुके हैं कि हमारी तैयारी पूरी है। यही बात दोहराई है। कम्पनी के मुताबिक फिलहाल 30 हजार बैरल रोजाना के उत्पादन एवं परिवहन की योजना है, लेकिन इस साल के आखिर तक 50 हजार बैरल प्रतिदिन की क्षमता जुटा ली जाएगी। बाड़मेर से गुजरात के सलाया तट तक जाने वाली पाइप लाइन का कार्य भी इसी अवधि में पूरा हो जाएगा। 600 किलोमीटर लम्बी पाइपलाइन में से 520 किलोमीटर पाइपलाइन की वेल्डिंग पूरी हो गई है तथा 400 किमी तक पाइप बिछा दिए गए हैं। गुजरात में वीरमगाव टर्मिनल पर पाइप लाइन का कार्य 90 फीसदी काम पूरा हो गया है।


खुद गए हैं 28 कुए


तेल दोहन के लिए कुओं को तैयार करने का कार्य भी युद्धस्तर पर चल रहा है। इसके लिए मंगला क्षेत्र में दो ड्रिलिंग रिग एवं एक कम्प्लीशन रिग काम कर रही हैं। फिलहाल यहां 28 कुएं खोदे गए हैं, जिसमें से 16 कुएं तेल उगलने को तैयार हैं। इसके अलावा तेली तो यह भी बता रहे हैं कि कम्पनी राजस्थान ब्लॉक में गैस उत्पादन बढ़ाने की भी संभावनाएं तलाश रही है। रागेश्वरी क्षेत्र में गैस की मात्रा के आकलन के लिए तीन और कुए खोदने की योजना है। इसकी तैयारी चल रही है। केयर्न को इस क्षेत्र में गैस की मात्रा दुगुने से ज्यादा होने की उम्मीद है। तो गुरु, अपनी तो निकल पड़ेगी.....

Sunday, July 26, 2009

जैसलमेर में भी गुड-न्यूज

तेल मण्डली के एक "बादशाह" ने कल ही इत्तला दी। बोले- जैसलमेर के लिए भी "गुड न्यूज" है। राज्य सरकार ने जैसलमेर स्थित दो तेल क्षेत्रों आरजे-ओएनएन-2005/1 और आरजे-ओएनएन-2005/2 के लिए पेट्रोलियम अन्वेषण लाइसेंस जारी कर दिया है। इसके तहत हिन्दुस्तान ऑयल एक्सप्लोरेशन कम्पनी लिमिटेड (एचओईसी) को इन दोनों ब्लॉक में तेल-गैस खोज करेगी। तकरीबन ढाई दशक से भी ज्यादा समय से यह कम्पनी तेल-गैस खोज के क्षेत्र में कार्य कर रही है। इस क्षेत्र में आने वाली देश की यह पहली निजी कम्पनी भी है। एचओईसी को न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पालिसी (नेल्प) के सातवें चरण में यह ब्लॉक आवंटित हुए थे। इसमें आरजे-ओएनएन-2005/1 ब्लॉक 1 हजार 424 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, वहीं आरजे-ओएनएन-2005/2 ब्लॉक का क्षेत्रफल 1 हजार 518 वर्ग किलोमीटर तक है।दोनों ब्लॉक में क्रमश: 20 एवं 25 फीसदी की हिस्सेदार रखने वाली एचओईसी जहां एक ब्लॉक की संचालक भी खुद ही है, वहीं दूसरे ब्लॉक आरजे-ओएनएन-2005/2 में ऑयल इण्डिया को ऑपरेटर बनाया गया है। एचओईसी फिलहाल देश के सात तेल-गैस क्षेत्रों में अन्वेषण एवं उत्पादन कर रही है। इसमें कावेरी, काम्बे एवं असम-अरकान बेसिन शामिल हैं। सरकार ने नेल्प-7 के कायदों के मुताबिक एचओईसी को सात साल के लिए इन दोनों ब्लॉक की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए कम्पनी के लाइसेंस की वैधता गत 13 जुलाई से मानी जाएगी। कम्पनी अब यहां तकनीकी परीक्षण एवं सर्वे के माध्यम से तेल के भण्डारों का पता लगाएगी।
तो है ना गुड न्यूज...?

Friday, July 10, 2009

करोड़ों का हुआ 'कबाड़ा'

भगवान जाने, हमारे तेल को किसकी नजर लग गई है। ना सरकार मान रही है और ना ही कम्पनियां। बाड़मेर से निकलने वाले कच्चे तेल पर वैट वसूली की खींचतान के कारण तेल उत्पादन में ही देरी नहीं हो रही, अब तो सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व से भी हाथ धोना पड़ रहा है। बीते दो महीनों में ही राजस्थान सरकार तकरीबन 500 करोड़ रुपए का राजस्व गंवा चुकी है। तेल मण्डली के एक 'तेली' ने बताया कि केयर्न इण्डिया ने तो पिछले मई महीने में ही तेल निकालने की तकनीकी तैयारी पूरी कर ली थी। कम्पनी की मई से ही दोहन शुरू करने की योजना भी थी। लेकिन जब सरकार ने इस तेल पर चार फीसदी वैट मांगा तो मामला अटक गया। 'तेली भाई' के अनुसार केयर्न इण्डिया एवं तेल की खरीदार कम्पनियां इस पर दो प्रतिशत सीएसटी (केन्द्रीय बिक्री कर) वसूलने का आग्रह कर रहीं हैं।

इसी खींचतान में राजस्थान की सरकार के हाथ से 500 करोड़ रुपए फिसल गए हैं। 'गणितज्ञ तेलियों' के अनुसार बाड़मेर से अगर मई में तेल उत्पादन शुरू हो जाता तो जून तक दो माह में राज्य सरकार को 500 करोड़ रुपए का राजस्व मिल सकता था। हकीकतन, मई में करीब 10 हजार बैरल प्रतिदिन तेल निकलने का अनुमान था, जो जून के आखिर तक बढ़ते-बढ़ते रोजाना 30 हजार बैरल तक पहुंच जाता। इस पर 65 डॉलर प्रति बैरल के अंतरराष्ट्रीय मूल्य से गणना करने पर राज्य सरकार को 10 से 12 करोड़ रुपए प्रतिदिन बतौर रॉयल्टी और बिक्री कर के रूप में मिल सकते थे।

पंगा यह है कि...

बाड़मेर में तेल खरीद केन्द्र होने के कारण राज्य सरकार यहां से निकलने वाले तेल पर चार फीसदी वैट मांग रही है, जबकि तेल खरीदार कम्पनियां और केयर्न इण्डिया अन्तरराज्यीय बेचान होने की वजह से केन्द्रीय बिक्री कर (सीएसटी) लगाने का आग्रह कर रही हैं। केयर्न ने इसके लिए सरकार के समक्ष कानूनी नजीरें भी पेश की हैं। उधर, वैट का मामला उलझने से कच्चे तेल का बिक्री-करार (कोसा) भी अटक गया है। फिलहाल यह मामला राजस्थान के अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है।

- गंगू-तेली

Monday, July 6, 2009

कुण्डली (कविता)

गंगूजी-तेली कहे, सुनिए राजा भोज ।
जब निकलेगा तेल, तब होगी सबकी मौज ॥
होगी सबकी मौज, तभी तो मंत्री-चाकर ।
झांक रहे कुओं में, आंखें फाड़े जाकर ॥
कह 'गंगू' कविराय, बोलते बम-बम बेली ।
तेल-तेल की माला जपते सारे तेली॥

'मंगला' पर 'शनि की दशा'

लगता है राजस्थान के मंगल तेल क्षेत्र पर शनि की दशा चल रही है। तारीख पर तारीख पड़ती जा रही है, पर तेल दोहन है कि शुरू होने का नाम ही नहीं ले रहा। तकनीकी रूप से तैयार होने के बावजूद केयर्न इण्डिया का जल्दी-उत्पादन शुरू करने का मंसूबा भी पूरा नहीं पाया। राज्य सरकार और कम्पनी के बीच वैट मामले को लेकर गतिरोध के चलते अभी भी इस मामले में तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। हालांकि पहले-पहले मई के आखिरी हफ्ते से तेल दोहन शुरू करने की कवायद चल रही थी। इस बारे में कम्पनी ने सीधे-सीधे तो ऐलान नहीं किया था, पर कई बार ऐसे संकेत दिए। इतना ही नहीं बाड़मेर के नगाणा स्थित मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल (एमपीटी) के तकनीकी रूप से तैयार होने में देरी को देखते हुए स्टार्ट-अप प्रोडक्शन पैकेज (सप) भी विकसित किया गया। इसमें कच्चे तेल से पानी एवं मिट्टïी के अंश अलग करने वाले छोटे सैपरेटर, बॉयलर एवं लोडिंग-बे समेत अन्य उपकरण लगाए गए, लेकिन राज्य सरकार की ओर से उत्पादित तेल पर स्थानीय कर यानी वैट की मांग के चलते इसमें रोड़ा अटक गया। अब कम्पनी और सरकार के बीच इस मुद्दे पर उच्चस्तरीय बातचीत का दौर जारी है, लेकिन मामला निर्णायक स्तर पर नहीं पहुंचा है।

'फल' रही है 'वाचा'

तेल दोहन शुरू करने के मामले में केयर्न की 'वाचा' फलीभूत हो रही है। कम्पनी ने शुरू में ही वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही से तेल दोहन शुरू करने की घोषणा कर दी थी। मई में उत्पादन की तैयारी पूरी करने के बाद भी केयर्न ने इस पर जुबान नहीं खोली। आखिर अब शीघ्र तेल दोहन शुरू करने की इच्छा के बावजूद देरी का मुंह देखना पड़ रहा है।

कयासों का दौर


दोहन शुरू होने को लेकर अब भी कयास ही लग रहे हैं। जून का महीना भी सूखा गुजरने के बाद अब जुलाई दूसरे पखवाड़े से तेल दोहन शुरू होने की चर्चा है। वैसे, कम्पनी वाले तो अभी भी कुछ नहीं बोल रहे। अपने राम को यही चिंता है कि आखिर होगा क्या...?
जय राजा भोज की...
- गंगू-तेली

धोरे बुझाएंगे तेल की प्यास-3

राजस्थान में 1600 करोड़ निवेश करेगी ओएनजीसी
मंगला-भाग्यम-ऐश्वर्या तेल क्षेत्र की संशोधित विकास योजना को मंजूरी
एक और अच्छी खबर है। देश के सबसे बड़े जमीनी तेल भण्डार 'मंगला' के विकास के लिए तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने आखिर शनिवार को 'मंगल सौगात' दे दी । तेल की रॉयल्टी को लेकर खासे नखरे दिखाने के बाद अब ओएनजीसी ने बाड़मेर के इस वृहद तेल क्षेत्र में साढ़े तीन सौ मिलियन डॉलर (करीब 1 हजार 647 करोड़ रुपए) के और निवेश की हांमी भरी है। ओएनजीसी के निदेशक मण्डल ने इसके साथ ही केयर्न इण्डिया की संशोधित विकास योजना पर भी मंजूरी की मुहर लगा दी है।
इस फैसले से सरकार और ओनएजीसी के बीच रॉयल्टी को लेकर चल रही खींचतान भी कम होने की उम्मीद है। इसके अलावा राजस्थान के तेल क्षेत्र से ओएनजीसी की भागीदारी लौटाने की कुछ समय से चल रही अटकलों पर भी विराम लग जाएगा। राज्य में तेल दोहन को अच्छी गति मिलेगी, सो अलग। आप तो जानते ही हैं कि मंगला क्षेत्र की संचालक कम्पनी केयर्न इण्डिया ने यहां से तेल दोहन की तकनीकी तैयारी पूरी कर ली है और कम्पनी किसी भी क्षण उत्पादन शुरू करने को तैयार है।
यह भी जानिए...
ओएनजीसी ने मंगला क्षेत्र के विकास के लिए 1।241 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 2.396 बिलियन डॉलर की योजना पर सहमति जताई है। ऐश्वर्या तेल क्षेत्र के लिए 275 मिलियन डॉलर की संशोधित योजना को मंजूरी दी गई है। ओएनजीसी इस योजना का 30 फीसदी का हिस्सा खर्च करेगा। वहीं, भाग्यम क्षेत्र एवं तेल पाइप लाइन के विकास खर्च में कोई बदलाव नहीं हुआ है। संशोधित विकास योजना के बाद अब एमबीए (मंगला-भाग्यम-ऐश्वर्या) तेल क्षेत्र में ओएनजीसी का कुल हिस्सा 874।2 मिलियन डॉलर से बढ़कर 1.22 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
योजना को मिलेगी रफ़्तार
तेल पर रॉयल्टी चुकाने की जिम्मेदारी के मसले पर 'तिरछी' चल रही ओएनजीसी ने केयर्न इण्डिया का रिवाइज्ड डवलपमेंट प्लान अटका दिया था। अब सरकार की ओर से रॉयल्टी भरपाई का भरोसा मिलने के बाद इसे मंजूरी दी गई है। दरअसल, राजस्थान तेल क्षेत्र में ओएनजीसी की 30 फीसदी हिस्सेदारी है, लेकिन पुरानी नीति के मुताबिक उसे यहां से निकलने वाले तेल पर केयर्न के हिस्से की भी रॉयल्टी चुकानी होगी।
- गंगू तेली

Friday, June 19, 2009

रबर मत खींचो, हाथ करीब लाओ....

बगैर मुंह धोए और कुल्ला घुमाए हमने सवेरे उठते ही परम्परागत अंदाज में अखबार खोला, तो खबर दिखी 'अदालत भी जा सकती है केयर्न।'
यकीन जानिए हुजूर.... तभी अपना तो दिल धक् से बैठ गया। गोया 1999 मॉडल की मारुति कार का इंजन घर्र-घर्र कर थम गया हो। गनीमत थी कि इंजन की तरह ना तो दिल घुर्राया और ना ही थमा, पर रसोईघर में प्रात:कालीन अमृतपान की तैयारी कर रही घरवाली गुर्रा उठी। चीखते हुए से उसने पूछा- अरे, क्या हुआ...??? अब, जवाब तो क्या देते? कह दिया- नहीं-कुछ नहीं हुआ, ऐसे ही.....। लेकिन दोस्त! सिर्फ कहने भर से हालात सुधर जाते तो ये ससुर का नाती पाकिस्तान तो कब का अपना यार बन गया होता। कम्बख्त चाईना वालों से भी अपन गलबहियां कर रहे होते। और तो और... सारे आतंकवादी अपने बाबू मुसद्दीलाल के स्वयं-सहायता-समूह से जुड़े समाजसेवी होते या म्युनिसिपलिटी के कर्मचारी। खैर... अपने-राम को पीड़ा इस बात की थी कि अब स्थितियां कहां से कहां तक आ पहुंची। देखिए ना, डेढ़ पखवाड़े पहले की ही तो बात है। तेल निकालने वाली कम्पनी के सीईओ राहुल बाबू कह रहे थे-'हमें सबका सहयोग मिल रहा है। सरकार और ओएनजीसी भी राजस्थान प्रोजेक्ट में हमें पूरा कॉपरेट कर रहे हैं।' पर महीने भर से भी कम वक्त में तस्वीर बदल गई। राजस्थान की सरकार तेल पर 'वैट' मांगने लगी और मांगने ही क्या साहब, वैट वसूलने पर अड़ गई। अब आप तो जानते ही हैं कि 'अडऩा' सबका बुरा होता है। घोड़ा अड़ा तो सवार की हड्डियां चूर, ट्रेन में चढ़ते वक्त कोई मोटा आदमी अड़ गया तो दूसरी सवारियों के ट्रेन छूटने की आशंका भरपूर और तो और गले में सिक्का या फांस, आंख में कंकर या फिर दिमाग में कोई विचार... अड़ा हुआ तो दिक्कत ही देता है। कहते हैं- अड़ा-अड़ी में तो पिद्दी पहलवान भी सूमो-जापानी को 'भचीडऩे' के चला जाता है।
खैर... अपनी सरकार अड़ी 'वैट' पर। हम भी मानते हैं साहब कि अपनी नौकरशाही 'वैट' लेने की आदी है और इसी के चक्कर में बेचारा 'भोलाराम का जीव' (हरिशंकर परसाई जी की व्यंग्य-कथा का पात्र) पेंशन की दरख्वास्त वाली फाइलों में ही अटका रह गया था, पर यहां तो उस तरह के 'वैट' यानी 'वजन' की बात भी नहीं। क्यों कि ये गिनती तो पहले ही सिलेसिलेवार लिखी जा चुकी है। 1-2-3-4 सबकी 'सेटिंग' पहले ही हो चुकी। आप इशारा तो समझ ही गए होंगे! खैर... यहां पर वैट के माइने हैं- वैल्यू एडेड टैक्स। दरअसल, तेल निकालने वाली कम्पनी कह रही है कि इस तेल को हमने खोजा (यह बात और है कि इस पर कई लोगों को आपत्ति है), हम इसको निकाल रहे हैं और काण्डला बंदरगाह तक अपने खर्चे से पहुंचा रहे हैं, तो वैट कैसा? वैट तो तब लगता जबकि तेल राजस्थान का राजस्थान में ही बेचा जाता। ...सो लेना ही है, तो सीएसटी (केन्द्रीय बिक्री कर) ले लो। दोनों तरह के करों में (टैक्स में) फर्क भी तगड़ा है। वैट 4 फीसदी है और सीएसटी केवल 2 प्रतिशत। लिहाजा अपनी सरकार ने भी जमा लिया अंगद का पांव। राजस्व वाले महकमे के प्रमुख खजांची ने अड़ंगा लगा दिया। बोले- तेल हमारी जमीन से निकाल रहे हो तो वैट ही लगेगा। तेल निकालने वालों ने खूब समझाया। बड़े पर्दे पर तस्वीरें दिखाकर प्रजेंटेशन दिया। कानून वालों की जुबानी कायदे गिनाए। ऊंची-ऊंची अदालतों के फैसले पढ़ाए, पर खजांची साहब तो 'ऊं-हूं ' के अलावा कुछ बोलते ही नहीं। तंग आकर ये भी बिचारे क्या करते...? आखिर कह ही दिया कि- सीधी उंगली से तेल नहीं निकला तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ेगी। सरकार नहीं मानी तो अदालत जाएंगे। जज-साहब जो फैसला देंगे, वो मंजूर...।
खबरचियों ने इसी की खबरें छाप दीं। पढ़ते ही दिल को धक्का लगा। लाजिमी भी था। क्योंकि साहब! अपने-राम तो मानते हैं कि किसी बात को रबर की तरह खींचना ठीक नहीं। रबर का एक सिरा जो भी छोड़ता है, दूसरी ओर वाले को 'फ..टाक' से लगता है। चीख निकल जाती है पट्ठे की। ...सो अपने हिसाब से तो समझदारी इसी में है कि शांति से दोनों बात करें। हाथों को हौले-हौले करीब लाएं और आपस में मिला दें। इसी में हुजूरे-आला सबकी मौजां ही मौजां हो जाएगी। ना किसी को चोट लगेगी और ना होगा दर्द। पर मेरे मालिक, ऐसा हो तो सही....


- गंगू-तेली

Tuesday, June 16, 2009

धोरे बुझाएंगे तेल की प्यास-2



वैट कराए 'लेट'


तेल निकालने की सारी तैयारियां परवान चढ़ गईं हैं तो अब राज्य सरकार ने उत्पादित तेल पर केन्द्रीय बिक्रीकर (CST) की बजाय स्थानीय बिक्री कर यानी (VAT Tax) मांगकर नया अड़ंगा लगा दिया है। इसके चलते मई के अंतिम सप्ताह से उत्पादन शुरू करने जा रही तेल कम्पनी जून के दूसरा सप्ताह बीत जाने पर भी कोई निर्णय नहीं कर पा रही है। खबरनवीस बताते हैं कि प्रदेश में वैट मांगने का मुद्दा तो भाजपा शासनकाल से ही चला आ रहा है। अबके वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कुछ नरम हैं, पर सरकारी अफसरों ने कायदे गिनाकर वैट को सही बताया है। इस पर सहमति नहीं बनने के कारण केयर्न एनर्जी इण्डिया तथा खरीददार कम्पनियों के बीच क्रूड ऑयल सेल एग्रीमेंट (कोसा) नहीं हो पा रहा। बिना कोसा के थार में तेल का उत्पादन शुरू नहीं हो पाएगा।


झगड़े की जड़


गंगू-तेली को मिली खबरों के अनुसार झगड़े की जड़ तेल का डिलीवरी प्वाइंट है। सरकार शुरू से ही चाहती है कि तेल का डिलीवरी प्वाइंट राजस्थान में रहे। साल भर पहले जब पाइपलाइन बिछाकर इस तेल को गुजरात के बन्दरगाह तक ले जाने की बात उठी तब भी सरकार ने आपत्ति की थी। इससे राज्य सरकार को सीएसटी की जगह वैट मिलता और दुगुना फायदा होता। तेल निकालने वाली कम्पनी का कहना था कि पाइप लाइन बिछने पर तेल का डिलीवरी प्वाइंट राजस्थान नहीं हो सकता। पाइप लाइन का अंतिम छोर, जहां से तेल बेचा जाएगा, वहीं होगा। पर सरकार के दबाव में कम्पनी ने अंडरटेकिंग दे दी थी कि खरीद का केन्द्र राजस्थान में रहेगा और खरीददार कम्पनी को राज्य में अपना कार्यालय खोलना पड़ेगा। भाजपा की सरकार ने तो इसके बाद भी कम्पनी को राजस्थान से तेल ले जाने को पाइप लाइन बिछाने की अनुमति नहीं दी थी। कांग्रेस ने नरमी दिखाते हुए पाइप लाइन बिछाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन वैट के मामले में मौजूदा सरकार ने भी अब तक कोई फैसला नहीं किया है। अब दिक्कत यह है कि जब तक यह तय नहीं हो जाता, तब तक तेल निकलना भी अटका रहेगा।


इक-दूजे को कानून गिनाएं


अब कम्पनी और सरकार दोनों एक-दूसरे को कानून गिना रहे हैं। कम्पनी ने तो दिल्ली-मुम्बई के धंतरसिंह कानूनियों से राय-मशविरा करके अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी है, लेकिन कहीं से समझौते की खिचड़ी पकने की खुशबू नहीं आ रही है।
करोड़ों का खेलवैट का अडंगा यूं ही नहीं लगाया है। इसमें करोड़ों का खेल है। गंगू-तेली को मिली खबरों के मुताबिक राजस्थान को तेल की रॉयल्टी से हर साल करोड़ों रुपए मिलेंगे। इसमें अगर सरकार सीएसटी वसूलती है, तो उसे दो फीसदी ही टैक्स मिलेगा, जबकि वैट में टैक्स की रकम चार प्रतिशत होगी।


- गंगू तेली

Monday, June 15, 2009

धोरे बुझाएंगे देश की 'प्यास'

थार के रेतीले धोरे जल्द ही हिन्दुस्तान की तेल की प्यास बुझाने लगेंगे। इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर तैयारी तेज हो गई है। तेल अन्वेषक कम्पनी द्वारा बाड़मेर में खोदे जा रहे तेल के कुओं को तकनीकी रूप से तैयार करने के लिए यहां तीन रिग काम कर रही हैं। इसमें दो ड्रिलिंग रिग्स एवं एक कम्प्लीशन रिग है। तेल-गैस क्षेत्र की नामवर सेवा प्रदाता जॉन एनर्जी कम्पनी ने करीब छह सौ होर्स पॉवर क्षमता की कम्प्लीशन रिग उपलब्ध करवाई है। यह रिग तेल के कुओं को उत्पादन से पूर्व अंतिम रूप देने का कार्य कर रही है। इसीलिए इस रिग को 'कम्प्लीशन रिग' का नाम दिया गया है। यह सभी रिग अभी बाड़मेर के मंगला तेल क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।
तेल अन्वेषक कम्पनी केयर्न इण्डिया का दावा है कि कम्पनी तेल निकालने के लिए पूरी तरह से तैयार है। सरकार की हरी झण्डी मिलते ही तेल निकालने का काम शुरू हो जाएगा।
सरकार को 'वैट' चाहिए
आप तो जानते हैं कि सरकारी काम-काज बिना 'वैट' के नहीं होता। यानी जो भी फाइल सरकानी हो, उस पर वैट रख दो, खटके से पहुंच जाएगी ठिकाने पर। राजस्थान की सरकार को भी तेल पर वैट चाहिए। यह वैट 'उस तरह' का वैट तो नहीं है, लेकिन वैट तो वैट होता है जनाब। सरकार ने तेल पर वैट (VAT Tax) मांग लिया है। केयर्न एनर्जी इण्डिया कम्पनी इस पर सीएसटी देने को तैयार है। सीएसटी 2 प्रतिशत होता है, जबकि वैट 4 प्रतिशत होगा। इससे केयर्न का मुनाफा कम हो जाएगा। अब देखना यह है कि कम्पनी और सरकार का गतिरोध कब दूर होता पाता है। वैसे अखबार वाले साथी बताते हैं कि वैट के चक्कर में कम्पनी ने बाड़मेर में तेल निकालने का परीक्षण भी रोक लिया है। कम्पनी को 5 जून तक परीक्षण करना था।
जारी.......
- गंगू तेली

Saturday, June 13, 2009

तेल उगलेगा राजस्थान

प्रिय पाठकों,
राम-राम।
तेल के तराने में पहले-पहल राजस्थान के तेल क्षेत्र के बारे में मोटी-मोटी जानकारी दे रहा हूं। इसके बाद सिलसिलेवार और बातें करेंगे। आपके सुझाव आमंत्रित हैं...


थार का मरुस्थल अपनी अनूठी पारस्थितिकी के लिए जाना जाना है। रेत के इसी दरिया में छुपे हैं तेल के अकूत भण्डार। राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित नागाणा गांव में देश के अब तक के सबसे बड़े तेल भण्डार मिले हैं। इनसे अब तेल दोहन की तैयारी चल रही है। बाड़मेर बेसिन में स्थित इस क्षेत्र में तेल-गैस की खोज वर्ष 2002 में शुरू की गई थी। वर्ष 2004 में यहां मंगला फील्ड की खोज की गई। मंगला फील्ड राजस्थान का सबसे बड़ा ऑयल फील्ड है। यह आरजे-ओएन 90/1 ऑयल ब्लॉक का हिस्सा है। इस ब्लॉक में मंगला के अलावा ऐश्वर्या, भाग्यम, सरस्वती व रागेश्वरी ब्लॉक भी शामिल है। पूरा ब्लॉक तकरीबन साढ़े तीन हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। बाड़मेर बेसिन में 3.7 बिलियन बैरल तेल भंडार मौजूद है। यह ब्लॉक यू.के. की कम्पनी केयर्न एनर्जी की सहयोगी भारतीय कम्पनी केयर्न इण्डिया के पस है। यह कम्पनी मंगला, भाग्यम व ऐश्वर्या तेल क्षेत्र में दो बिलियन टन तेल के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किए हुए है। शुरुआत में मंगला फील्ड में 7 से 8 हजार बैरल तेल का उत्पादन किया जाएगा। महीने भर में इसे बढ़ाकर 30 हजार बैरल तेल तक पहुंचाया जाएगा तथा दो साल में रोजाना पौने दो लाख बैरल तेल का उत्पादन होने लगेगा। कम्पनी ने अपनी ओर से इसके लिए तैयारी कर ली है, लेकिन तेल के बिक्री मूल्य को लेकर मामला अटका हुआ है। फिर भी उम्मीद जताई जा रही है कि जुलाई तक राजस्थान से तेल उत्पादन शुरू हो जाएगा।

- गंगू तेली

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