Friday, June 19, 2009

रबर मत खींचो, हाथ करीब लाओ....

बगैर मुंह धोए और कुल्ला घुमाए हमने सवेरे उठते ही परम्परागत अंदाज में अखबार खोला, तो खबर दिखी 'अदालत भी जा सकती है केयर्न।'
यकीन जानिए हुजूर.... तभी अपना तो दिल धक् से बैठ गया। गोया 1999 मॉडल की मारुति कार का इंजन घर्र-घर्र कर थम गया हो। गनीमत थी कि इंजन की तरह ना तो दिल घुर्राया और ना ही थमा, पर रसोईघर में प्रात:कालीन अमृतपान की तैयारी कर रही घरवाली गुर्रा उठी। चीखते हुए से उसने पूछा- अरे, क्या हुआ...??? अब, जवाब तो क्या देते? कह दिया- नहीं-कुछ नहीं हुआ, ऐसे ही.....। लेकिन दोस्त! सिर्फ कहने भर से हालात सुधर जाते तो ये ससुर का नाती पाकिस्तान तो कब का अपना यार बन गया होता। कम्बख्त चाईना वालों से भी अपन गलबहियां कर रहे होते। और तो और... सारे आतंकवादी अपने बाबू मुसद्दीलाल के स्वयं-सहायता-समूह से जुड़े समाजसेवी होते या म्युनिसिपलिटी के कर्मचारी। खैर... अपने-राम को पीड़ा इस बात की थी कि अब स्थितियां कहां से कहां तक आ पहुंची। देखिए ना, डेढ़ पखवाड़े पहले की ही तो बात है। तेल निकालने वाली कम्पनी के सीईओ राहुल बाबू कह रहे थे-'हमें सबका सहयोग मिल रहा है। सरकार और ओएनजीसी भी राजस्थान प्रोजेक्ट में हमें पूरा कॉपरेट कर रहे हैं।' पर महीने भर से भी कम वक्त में तस्वीर बदल गई। राजस्थान की सरकार तेल पर 'वैट' मांगने लगी और मांगने ही क्या साहब, वैट वसूलने पर अड़ गई। अब आप तो जानते ही हैं कि 'अडऩा' सबका बुरा होता है। घोड़ा अड़ा तो सवार की हड्डियां चूर, ट्रेन में चढ़ते वक्त कोई मोटा आदमी अड़ गया तो दूसरी सवारियों के ट्रेन छूटने की आशंका भरपूर और तो और गले में सिक्का या फांस, आंख में कंकर या फिर दिमाग में कोई विचार... अड़ा हुआ तो दिक्कत ही देता है। कहते हैं- अड़ा-अड़ी में तो पिद्दी पहलवान भी सूमो-जापानी को 'भचीडऩे' के चला जाता है।
खैर... अपनी सरकार अड़ी 'वैट' पर। हम भी मानते हैं साहब कि अपनी नौकरशाही 'वैट' लेने की आदी है और इसी के चक्कर में बेचारा 'भोलाराम का जीव' (हरिशंकर परसाई जी की व्यंग्य-कथा का पात्र) पेंशन की दरख्वास्त वाली फाइलों में ही अटका रह गया था, पर यहां तो उस तरह के 'वैट' यानी 'वजन' की बात भी नहीं। क्यों कि ये गिनती तो पहले ही सिलेसिलेवार लिखी जा चुकी है। 1-2-3-4 सबकी 'सेटिंग' पहले ही हो चुकी। आप इशारा तो समझ ही गए होंगे! खैर... यहां पर वैट के माइने हैं- वैल्यू एडेड टैक्स। दरअसल, तेल निकालने वाली कम्पनी कह रही है कि इस तेल को हमने खोजा (यह बात और है कि इस पर कई लोगों को आपत्ति है), हम इसको निकाल रहे हैं और काण्डला बंदरगाह तक अपने खर्चे से पहुंचा रहे हैं, तो वैट कैसा? वैट तो तब लगता जबकि तेल राजस्थान का राजस्थान में ही बेचा जाता। ...सो लेना ही है, तो सीएसटी (केन्द्रीय बिक्री कर) ले लो। दोनों तरह के करों में (टैक्स में) फर्क भी तगड़ा है। वैट 4 फीसदी है और सीएसटी केवल 2 प्रतिशत। लिहाजा अपनी सरकार ने भी जमा लिया अंगद का पांव। राजस्व वाले महकमे के प्रमुख खजांची ने अड़ंगा लगा दिया। बोले- तेल हमारी जमीन से निकाल रहे हो तो वैट ही लगेगा। तेल निकालने वालों ने खूब समझाया। बड़े पर्दे पर तस्वीरें दिखाकर प्रजेंटेशन दिया। कानून वालों की जुबानी कायदे गिनाए। ऊंची-ऊंची अदालतों के फैसले पढ़ाए, पर खजांची साहब तो 'ऊं-हूं ' के अलावा कुछ बोलते ही नहीं। तंग आकर ये भी बिचारे क्या करते...? आखिर कह ही दिया कि- सीधी उंगली से तेल नहीं निकला तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ेगी। सरकार नहीं मानी तो अदालत जाएंगे। जज-साहब जो फैसला देंगे, वो मंजूर...।
खबरचियों ने इसी की खबरें छाप दीं। पढ़ते ही दिल को धक्का लगा। लाजिमी भी था। क्योंकि साहब! अपने-राम तो मानते हैं कि किसी बात को रबर की तरह खींचना ठीक नहीं। रबर का एक सिरा जो भी छोड़ता है, दूसरी ओर वाले को 'फ..टाक' से लगता है। चीख निकल जाती है पट्ठे की। ...सो अपने हिसाब से तो समझदारी इसी में है कि शांति से दोनों बात करें। हाथों को हौले-हौले करीब लाएं और आपस में मिला दें। इसी में हुजूरे-आला सबकी मौजां ही मौजां हो जाएगी। ना किसी को चोट लगेगी और ना होगा दर्द। पर मेरे मालिक, ऐसा हो तो सही....


- गंगू-तेली

Tuesday, June 16, 2009

धोरे बुझाएंगे तेल की प्यास-2



वैट कराए 'लेट'


तेल निकालने की सारी तैयारियां परवान चढ़ गईं हैं तो अब राज्य सरकार ने उत्पादित तेल पर केन्द्रीय बिक्रीकर (CST) की बजाय स्थानीय बिक्री कर यानी (VAT Tax) मांगकर नया अड़ंगा लगा दिया है। इसके चलते मई के अंतिम सप्ताह से उत्पादन शुरू करने जा रही तेल कम्पनी जून के दूसरा सप्ताह बीत जाने पर भी कोई निर्णय नहीं कर पा रही है। खबरनवीस बताते हैं कि प्रदेश में वैट मांगने का मुद्दा तो भाजपा शासनकाल से ही चला आ रहा है। अबके वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कुछ नरम हैं, पर सरकारी अफसरों ने कायदे गिनाकर वैट को सही बताया है। इस पर सहमति नहीं बनने के कारण केयर्न एनर्जी इण्डिया तथा खरीददार कम्पनियों के बीच क्रूड ऑयल सेल एग्रीमेंट (कोसा) नहीं हो पा रहा। बिना कोसा के थार में तेल का उत्पादन शुरू नहीं हो पाएगा।


झगड़े की जड़


गंगू-तेली को मिली खबरों के अनुसार झगड़े की जड़ तेल का डिलीवरी प्वाइंट है। सरकार शुरू से ही चाहती है कि तेल का डिलीवरी प्वाइंट राजस्थान में रहे। साल भर पहले जब पाइपलाइन बिछाकर इस तेल को गुजरात के बन्दरगाह तक ले जाने की बात उठी तब भी सरकार ने आपत्ति की थी। इससे राज्य सरकार को सीएसटी की जगह वैट मिलता और दुगुना फायदा होता। तेल निकालने वाली कम्पनी का कहना था कि पाइप लाइन बिछने पर तेल का डिलीवरी प्वाइंट राजस्थान नहीं हो सकता। पाइप लाइन का अंतिम छोर, जहां से तेल बेचा जाएगा, वहीं होगा। पर सरकार के दबाव में कम्पनी ने अंडरटेकिंग दे दी थी कि खरीद का केन्द्र राजस्थान में रहेगा और खरीददार कम्पनी को राज्य में अपना कार्यालय खोलना पड़ेगा। भाजपा की सरकार ने तो इसके बाद भी कम्पनी को राजस्थान से तेल ले जाने को पाइप लाइन बिछाने की अनुमति नहीं दी थी। कांग्रेस ने नरमी दिखाते हुए पाइप लाइन बिछाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन वैट के मामले में मौजूदा सरकार ने भी अब तक कोई फैसला नहीं किया है। अब दिक्कत यह है कि जब तक यह तय नहीं हो जाता, तब तक तेल निकलना भी अटका रहेगा।


इक-दूजे को कानून गिनाएं


अब कम्पनी और सरकार दोनों एक-दूसरे को कानून गिना रहे हैं। कम्पनी ने तो दिल्ली-मुम्बई के धंतरसिंह कानूनियों से राय-मशविरा करके अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी है, लेकिन कहीं से समझौते की खिचड़ी पकने की खुशबू नहीं आ रही है।
करोड़ों का खेलवैट का अडंगा यूं ही नहीं लगाया है। इसमें करोड़ों का खेल है। गंगू-तेली को मिली खबरों के मुताबिक राजस्थान को तेल की रॉयल्टी से हर साल करोड़ों रुपए मिलेंगे। इसमें अगर सरकार सीएसटी वसूलती है, तो उसे दो फीसदी ही टैक्स मिलेगा, जबकि वैट में टैक्स की रकम चार प्रतिशत होगी।


- गंगू तेली

Monday, June 15, 2009

धोरे बुझाएंगे देश की 'प्यास'

थार के रेतीले धोरे जल्द ही हिन्दुस्तान की तेल की प्यास बुझाने लगेंगे। इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर तैयारी तेज हो गई है। तेल अन्वेषक कम्पनी द्वारा बाड़मेर में खोदे जा रहे तेल के कुओं को तकनीकी रूप से तैयार करने के लिए यहां तीन रिग काम कर रही हैं। इसमें दो ड्रिलिंग रिग्स एवं एक कम्प्लीशन रिग है। तेल-गैस क्षेत्र की नामवर सेवा प्रदाता जॉन एनर्जी कम्पनी ने करीब छह सौ होर्स पॉवर क्षमता की कम्प्लीशन रिग उपलब्ध करवाई है। यह रिग तेल के कुओं को उत्पादन से पूर्व अंतिम रूप देने का कार्य कर रही है। इसीलिए इस रिग को 'कम्प्लीशन रिग' का नाम दिया गया है। यह सभी रिग अभी बाड़मेर के मंगला तेल क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।
तेल अन्वेषक कम्पनी केयर्न इण्डिया का दावा है कि कम्पनी तेल निकालने के लिए पूरी तरह से तैयार है। सरकार की हरी झण्डी मिलते ही तेल निकालने का काम शुरू हो जाएगा।
सरकार को 'वैट' चाहिए
आप तो जानते हैं कि सरकारी काम-काज बिना 'वैट' के नहीं होता। यानी जो भी फाइल सरकानी हो, उस पर वैट रख दो, खटके से पहुंच जाएगी ठिकाने पर। राजस्थान की सरकार को भी तेल पर वैट चाहिए। यह वैट 'उस तरह' का वैट तो नहीं है, लेकिन वैट तो वैट होता है जनाब। सरकार ने तेल पर वैट (VAT Tax) मांग लिया है। केयर्न एनर्जी इण्डिया कम्पनी इस पर सीएसटी देने को तैयार है। सीएसटी 2 प्रतिशत होता है, जबकि वैट 4 प्रतिशत होगा। इससे केयर्न का मुनाफा कम हो जाएगा। अब देखना यह है कि कम्पनी और सरकार का गतिरोध कब दूर होता पाता है। वैसे अखबार वाले साथी बताते हैं कि वैट के चक्कर में कम्पनी ने बाड़मेर में तेल निकालने का परीक्षण भी रोक लिया है। कम्पनी को 5 जून तक परीक्षण करना था।
जारी.......
- गंगू तेली

Saturday, June 13, 2009

तेल उगलेगा राजस्थान

प्रिय पाठकों,
राम-राम।
तेल के तराने में पहले-पहल राजस्थान के तेल क्षेत्र के बारे में मोटी-मोटी जानकारी दे रहा हूं। इसके बाद सिलसिलेवार और बातें करेंगे। आपके सुझाव आमंत्रित हैं...


थार का मरुस्थल अपनी अनूठी पारस्थितिकी के लिए जाना जाना है। रेत के इसी दरिया में छुपे हैं तेल के अकूत भण्डार। राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित नागाणा गांव में देश के अब तक के सबसे बड़े तेल भण्डार मिले हैं। इनसे अब तेल दोहन की तैयारी चल रही है। बाड़मेर बेसिन में स्थित इस क्षेत्र में तेल-गैस की खोज वर्ष 2002 में शुरू की गई थी। वर्ष 2004 में यहां मंगला फील्ड की खोज की गई। मंगला फील्ड राजस्थान का सबसे बड़ा ऑयल फील्ड है। यह आरजे-ओएन 90/1 ऑयल ब्लॉक का हिस्सा है। इस ब्लॉक में मंगला के अलावा ऐश्वर्या, भाग्यम, सरस्वती व रागेश्वरी ब्लॉक भी शामिल है। पूरा ब्लॉक तकरीबन साढ़े तीन हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। बाड़मेर बेसिन में 3.7 बिलियन बैरल तेल भंडार मौजूद है। यह ब्लॉक यू.के. की कम्पनी केयर्न एनर्जी की सहयोगी भारतीय कम्पनी केयर्न इण्डिया के पस है। यह कम्पनी मंगला, भाग्यम व ऐश्वर्या तेल क्षेत्र में दो बिलियन टन तेल के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किए हुए है। शुरुआत में मंगला फील्ड में 7 से 8 हजार बैरल तेल का उत्पादन किया जाएगा। महीने भर में इसे बढ़ाकर 30 हजार बैरल तेल तक पहुंचाया जाएगा तथा दो साल में रोजाना पौने दो लाख बैरल तेल का उत्पादन होने लगेगा। कम्पनी ने अपनी ओर से इसके लिए तैयारी कर ली है, लेकिन तेल के बिक्री मूल्य को लेकर मामला अटका हुआ है। फिर भी उम्मीद जताई जा रही है कि जुलाई तक राजस्थान से तेल उत्पादन शुरू हो जाएगा।

- गंगू तेली

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