Monday, August 24, 2009

खुशखबरी : 29 से शुरू होगा तेल दोहन

खुशखबरी... खुशखबरी... खुशखबरी...
आखिर वक्त आ ही गया। स्वागत-सत्कार और खुशियां मनाने का। राजस्थानी तेल के धरती की कोख से बाहर निकलने का दिन बिल्कुल करीब आ गया है। इतना करीब कि हाथ बढ़ाकर छू लो... है ना खुशी की बात...? बाड़मेर में तेल दोहन का उदघाटन करने के लिए खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 29 अगस्त को धोरां-धरती पर आएंगे। बाड़मेर ब्लॉक की ऑपरेटर कम्पनी केयर्न इण्डिया के साथ सुरक्षा एजेंसिंयों व सरकारी स्तर पर तो इस मौके आयोजित होने वाली समारोह की तैयारियां भी तेज हो गई हैं। खबरीलाल के मुताबिक देश के इस सबसे बड़े जमीनी भण्डार से तेल दोहन शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री के बाड़मेर आने का कार्यक्रम तय हो गया है। लिहाजा उनकी सुरक्षा से जुड़ी केन्द्रीय एवं स्थानीय सुरक्षा एजेंसियों को माकूल इंतजाम करने को कहा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय से भी उदघाटन समारोह की रूपरेखा, कार्यक्रम स्थल एवं अन्य व्यवस्थाओं को लेकर केयर्न इण्डिया एवं स्थानीय अधिकारियों से जानकारी जुटाई जा रही है।
आपूर्ति स्थल बदले
इस बीच, केन्द्र सरकार ने खरीदार कम्पनियों की चिंता मिटाते हुए 'राजस्थानी तेल' के आपूर्ति स्थल (डिलीवरी पॉइंट) में बदलाव कर दिया है। सचिवों की एक विशेषाधिकार प्राप्त समिति ने इसकी मंजूरी देते हुए काण्डला बंदरगाह को मैंगलोर रिफाइनरी एण्ड पेट्रोकेमिकल्स (एमआरपीएल) एवं हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड सरीखे खरीदारों के लिए अंतरिम आपूर्ति स्थल तथा गुजरात के भोगत, राधनपुर एवं वीरमगांव को इण्डियन ऑयल कॉरपोरेशन गुजरात के लिए कच्चे तेल का आपूर्ति स्थल तय किया है। बताया जाता है कि आपूर्ति स्थल में यह बदलाव तेल परिवहन पाइप लाइन के पूरा होने तक ही रहेगा।
सरकारी कम्पनियों का पहला हक
सचिवों की इसी समिति ने राजस्थानी तेल पर पहला हक सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों का माना है। समिति ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों की आवश्यकता एवं क्षमता आकलन करने के बाद ही निजी कम्पनियों को तेल बेचने पर विचार किया जा सकता है। आपको तो पता ही है एस्सार और रिलायंस जैसी कम्पनियां भी राजस्थानी तेल की दीवानी है।
7 लाख टन की पैदावार
जानकारों के मुताबिक, सरकार द्वारा नामित तीनों कम्पनियां मिलकर मौजूदा वित्तीय वर्ष में 7 लाख टन कच्चे तेल की खरीद करेंगी, इतना ही तेल शुरुआत में दोहन भी होगा। इसमें एचपीसीएल 3 लाख टन एवं आईओसी व एमआरपीएल 2-2 लाख टन कच्चा खरीदेंगे। सार्वजनिक क्षेत्र की इन कम्पनियों की क्षमता का आकलन कर खरीद में इजाफा किए जाने की योजना है। खरीदार कम्पनियों तक तेल पहुंचाने के लिए शुरुआत में टैंकर्स का इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं, इस साल के आखिर तक तेल पाइपलाइन भी तैयार हो जाएगी।
जल्द हो जाएगा कोसा
तेल खरीद के लिए जहां सार्वजनिक क्षेत्र के तीन खरीदारों के नाम सरकार ने तय कर लिए हैं, वहीं खरीदारों और विक्रेता कम्पनी के बीच क्रूड ऑयल सेल्स एग्रीमेंट (कोसा) की कवायद भी शुरू हो गई है। खबरीलाल के मुताबिक तेल के बिक्री मूल्य पर तो पहले ही सहमति बन गई है। अब दोहन शुरू करने से पहले ही कोसा पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। इसके साथ ही कम्पनी थार से धोरों से तेल निकालने का कार्य शुरू कर देगी। शुरुआत में जहां रोजाना 30 हजार बैरल तेल निकाला जाएगा, वहीं वर्ष 2010 की दूसरी छह माही तक 1 लाख 25 हजार बैरल तेल प्रतिदिन निकलने लगेगा। चरम स्थिति में राजस्थान ब्लॉक से रोजाना 1 लाख 75 हजार बैरल तेल उत्पादित होगा। इसके लिए संचालक कम्पनी केयर्न इण्डिया ने अत्याधुनिक ईओआर तकनीक के इस्तेमाल का भी निर्णय किया है।

Wednesday, August 5, 2009

कहीं 'मामू' तो नहीं बना रहे

राजा भोज अक्सर कहते हैं- रे गंगू, तू भी पूरा 'मामू' है...। कुछ समझता ही नहीं...। दुनियादारी की भी थोड़ी समझ रख बावळे...। और 'अपने-राम' मुस्कुरा कर रह जाते हैं।
पता है? राजाजी तो प्यार से कहते हैं, पर जनाब इन तेल निकालने वालों ने तो हमको सचमुच में ही मूर्ख समझ रखा है। चौथाई साल से तो राजस्थान को ही नहीं पूरे देश को 'मामू' बना रहे हैं।
'भाई-लोगों' ने पहले-पहल बात उछाली कि मई के महीने से थार के धोरे तेल उगलने लगेंगे। यह खबर सुनते ही पप्पू पहलवान से लेकर चंपू चोर तक सब खुश हो गए। अपने बिरादर 'तेलियों' ने भी जमकर तालियां बजाई। करोड़ो आखों ने ख्वाब सजाए और रूखे राजस्थान में 'चिकनाई' का जश्न मनाया गया। 'अपने-राम' तेल निकलने वाली जगह के आसपास में गांव-वालों से बतियाए तो वहां भी लोगों के चेहरे पर नूर नजर आया, लेकिन बात सुसुरी बात ही रह गई। मई के चारों के चारों हफ्ते सूखे गुजर गए। यकीन जानिए सा'ब, सबको बड़ी निराशा हुई। अपने-राम ने भी सोचा कि यार... इस कदर तो सावन भी बेवफाई नहीं करता। भले ही धोरों वाली धरती से उसका पुराना वैर है, पर वार-त्योहार में दो-चार बार तो 'बरखा-रानी' को भेज ही देता है। मगर तेलवालों ने तो झट से 'ठेंगा' दिखा दिया। आखिर अपन ने भी मन को समझाया कि भाई-
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता ॥
बाद में पता चला कि सूबे की सरकार के साथ वैट का मामला अटक गया है। बड़ा भारी रोड़ा है। कम्बखत 'क्रेन' से हटाना पड़ेगा। 'सेटिंग' चल रही है और जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। ...सो, अपन ने तो मास्टर चम्पालाल की पाठशाला में पढऩे वाले तीसरी क्लास के बच्चे की तरह मुंह पर उंगली रख दी। पूरा जून खामोशी में बिता दिया। लोग कहते रहे- जून में तेल दोहन शुरू हो जाएगा। जून आखिर तक तो पक्का। सोलह आना देख लेना। पर महीने बीत गया और हुआ वहीं, जो पिछले महीने में हुआ था। अब 'अपने-राम' ने तेल वालों से पूछा तो बोले- हमने कब कहा था कि मई-जून से तेल निकालेंगे। ये तो भइयै खबरचियों के कयास हैं। हमारा 'टारगेट' तो तीसरी तिमाही से शुरू करने है। अपन ने ऊंची कुर्सियों वालों भी पूछा, लेकिन अपन ठहरे मामूली आदमी। अव्वल तो 'साहब लोगों' ने जवाब ही नहीं दिए। गलती से कुछ बोले भी तो ऐसा घुमा-फिराकर कि उसका अर्थ 'गंगू तेली' तो क्या साक्षात 'राजा भोज' भी नहीं समझ सके। खैर, बातों-बातों में जुलाई का महीना भी लग गया। अबके थोड़ी आस बंधी। लगा कि अब तो 'टारगेट' वाला 'टाइम' भी शुरू हो गया। भाई-लोग कह रहे हैं कि हमने तैयार पूरी कर रखी है। बस 'नल' खोलने भर की देरी है, तो अबकी दफा तो कुछ हो ही जाएगा, लेकिन हुजूरे-आला तीसरी तिमाही का पहला महीना भी ऐसे ही फुर्र हो गया, जैसे बाकी के हुए थे। पर, इसके बाद 'बड़े लोगों' ने अपना लेखा-जोखा शेयर बाजार में सुनाया। रुपयों की जोड़-बाकी गिनाई। तरक्की के ख्वाब दिखाए। तेल निकालने वाली कम्पनी के सबसे बड़े 'बाबूजी' ने राजस्थान से तेल दोहन शुरू करने की मुनादी करवाई और अगस्त का महीना ऐलान कर दिया। 'बाबूजी' गोरे मालिकों की जुबानी बोले-
राजस्थान की धरती से तेल निकालना हमारे लिए मील का पत्थर साबित होगा।
'बाबूजी' की बात सुनकर अपन को भी खूब 'हरष' हुआ, सो बड़े तेलियों से पूछा कि- भाईसा, अगस्त के महीने में तो सुसुरे तीस दिन होवै हैं। अपने हिस्से कौनसा दिन आवैगा? भाईसा ने भी हौले से कहा- देख गंगू, अभी तो अगस्त की बात कही है, पर वैट वाले रोड़े की 'सेटिंग' अभी भी बैठी नहीं है। अब होने को तो इसी महीने में ले-देकर मामला 'फिट' हो जाए, पर ना हुआ तो यह महीना भी सूखा जा सकता है। इसलिए ज्यादा दिमाग मत दौड़ा बावळे...!
फिर कमर पे धौल धरते हुए भाईसा ने खीसें निपोर दीं- हें-हें-हें, तू भी पूरा मामू है रे गंगू। अब आप ही कहिए हुजूर, अपने कहने को क्या रह गया था? सो मामूली आदमी की तरह चुप हो गए। वैसे भी साहब, इन 'कॉरपोरेट' लोगों को 'ऑपरेट' करना अपने-राम को कहां आता है.....
- गंगू तेली

Tuesday, August 4, 2009

'तेल की नौकरी' में ठगी का खेल!!!

'भोज राजा' अक्सर हमसे कहा करते हैं- गंगू ये दुनिया बड़ी धोखेबाज है। लोग ऐसे रंग बदलते हैं कि गिरकिट भी शरमा जाए। तू ऐसे लोगों से सम्भलकर रहना...। मगर अपने-राम भी सोचते थे कि अगर हम किसी के साथ अच्छा करेंगे, तो कौन कम्बख्त हमको छलेगा, लेकिन अभी-अभी अखबारों में खबरें देखी तो माथा भन्ना गया। धोखेबाजों की जमात तो अपनी 'तेल नगरिया' तक भी पहुंच गई है।
दो रोज पहले राजस्थान के एक बड़े अखबार राजस्थान पत्रिका में खबर छपी- 'तेल की नौकरी' में ठगी का खेल!!! खबरचियों ने लिखा कि :-
अगर आप किसी नामी तेल-गैस कम्पनी से नौकरी का बुलावा पाकर खुश हैं, तो संभल जाइए। यह प्रस्ताव किसी बड़ी ठगी का हिस्सा भी हो सकता है। तेल-गैस उत्पादन में प्रगति के साथ ही इस क्षेत्र में नौकरी का झांसा देकर रुपए ऐंठने वाला गिरोह भी सक्रिय हो गया है। विदेशी धरती पर बैठे इस गिरोह के सरगना इंटरनेट के जरिए पूरे देश में जड़ें फैला रहे हैं। मारवाड़ तक भी इनकी पहुंच हो चुकी है। राहत की बात यह है कि फिलहाल इनके झांसे में फंसने का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन जोधपुर सहित संभाग के बाड़मेर एवं जालोर जिले में कई युवाओं को ऐसे फर्जी बुलावा पत्र (कॉल लैटर्स) एवं अनुबंध पत्र (कॉन्ट्रैक्ट लैटर) ईमेल से मिले हैं।
बड़ी तनख्वाह का झांसा
ई-मेल के जरिए नियुक्ति पत्र भेजने वाली ये कम्पनियां बड़ी तनख्वाह का लालच देकर युवाओं को फांस लेती हैं। एक युवक को मिले ऑफर लैटर में सेल्स मैनेजर पद के लिए 9500 पाउंड (तकरीबन साढ़े सात लाख रुपए) मासिक वेतन का प्रस्ताव दिया गया है। इसके अलावा भारत से ब्रिटेन आने-जाने का खर्च, रहने की व्यवस्था एवं अत्याधुनिक लैपटॉप सहित अन्य फायदे भी गिनाए गए हैं।
'शेल' के नाम का इस्तेमाल
ज्यादातर ऑफर लैटर लंदन (यूके) की शेल ऑयल कम्पनी के नाम से भेजे जा रहे हैं, लेकिन इनमें कम्पनी का पता, ई-मेल एवं फोन नम्बर फर्जी हैं। शेल की भारतीय इकाई शेल इण्डिया ने भी नौकरी के इन प्रस्तावों को पूरी तरह झूठा करार दिया है। उनका कहना है कि- 'हम किसी तरह की नियुक्ति या प्रशिक्षण के लिए पैसे नहीं मांगते तथा नियुक्ति प्रक्रिया भी अलग है। यदि कोई शेल के नाम से नियुक्ति पत्र भेजकर पैसा मंगवाता है, तो इन्हें व्यक्तिगत जानकारी नहीं दें और तत्काल पुलिस को सूचित करें।' कम्पनी ने अपनी अधिकृत वेबसाइट पर भी इसका खुलासा कर दिया है।
ऐसे लेते हैं झांसे में...
रोजगार मुहैया करवाने वाली वेबसाइट्स से ई-मेल पते जुटाकर ये कम्पनियां आवेदकों से बायोडाटा मंगवाती हैं। महीने भर बाद आवेदक को ऑफर लैटर व कॉन्ट्रैक्ट लैटर भेजा जाता है। इसमें आवेदक को यह भी बता दिया जाता है कि वर्क परमिट एवं वीजा का खर्चा उसे खुद उठाना होगा। अगर कोई आवेदक कॉन्ट्रैक्ट लैटर पर हस्ताक्षर कर भेज देता है, तो उससे 50 हजार रुपए से एक लाख रुपए तक की मांग की जाती है।
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