Thursday, July 30, 2009

अगस्त में निकलेगा तेल

पूछिए मत जनाब! आज तो हमने पूरा एक किलो कलाकंद खाया। क्या करें, खुशी ही कुछ ऎसी है। सुबह आंख खुलते ही एक तेली ने सूचना दी। बोले- आपको पता भी है कि नहीं आज तो अखबार वालों ने जोरदार खबर दी है।
लिखते हैं कि- थार के धोरों से तेल उत्पादन की बाधाएं अब कुछ दूर होती दिख रही है। तेल अन्वेषक केयर्न इण्डिया ने इण्डियन ऑयल कॉरपोरेशन एवं ओएनजीसी की मंगलौर रिफाइनरी एवं पेट्राकेमिकल्स लिमिटेड के साथ तेल के बिक्री मूल्य पर हाथ मिला लिया है। वहीं, कम्पनी ने अगले महीने बाड़मेर से तेल दोहन शुरू करने का ऐलान किया है। केयर्न इण्डिया ने चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के नतीजे जारी करते हुए बुधवार को यह घोषणा की। यह पहला मौका है जब कम्पनी ने आधिकारिक रूप से इसका ऐलान किया है। केयर्न अब तक वर्ष 2009 की तिसरी तिमाही से तेल उत्पादन शुरू करने की बात ही कहती रही है। कम्पनी की इस घोषणा को राज्य में वैट को लेकर सरकार से चल रहे गतिरोध के मामले में भी सुलह के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।


तैयारी तो पूरी है ही....



कंपनी वाले तो पहले ही कह चुके हैं कि हमारी तैयारी पूरी है। यही बात दोहराई है। कम्पनी के मुताबिक फिलहाल 30 हजार बैरल रोजाना के उत्पादन एवं परिवहन की योजना है, लेकिन इस साल के आखिर तक 50 हजार बैरल प्रतिदिन की क्षमता जुटा ली जाएगी। बाड़मेर से गुजरात के सलाया तट तक जाने वाली पाइप लाइन का कार्य भी इसी अवधि में पूरा हो जाएगा। 600 किलोमीटर लम्बी पाइपलाइन में से 520 किलोमीटर पाइपलाइन की वेल्डिंग पूरी हो गई है तथा 400 किमी तक पाइप बिछा दिए गए हैं। गुजरात में वीरमगाव टर्मिनल पर पाइप लाइन का कार्य 90 फीसदी काम पूरा हो गया है।


खुद गए हैं 28 कुए


तेल दोहन के लिए कुओं को तैयार करने का कार्य भी युद्धस्तर पर चल रहा है। इसके लिए मंगला क्षेत्र में दो ड्रिलिंग रिग एवं एक कम्प्लीशन रिग काम कर रही हैं। फिलहाल यहां 28 कुएं खोदे गए हैं, जिसमें से 16 कुएं तेल उगलने को तैयार हैं। इसके अलावा तेली तो यह भी बता रहे हैं कि कम्पनी राजस्थान ब्लॉक में गैस उत्पादन बढ़ाने की भी संभावनाएं तलाश रही है। रागेश्वरी क्षेत्र में गैस की मात्रा के आकलन के लिए तीन और कुए खोदने की योजना है। इसकी तैयारी चल रही है। केयर्न को इस क्षेत्र में गैस की मात्रा दुगुने से ज्यादा होने की उम्मीद है। तो गुरु, अपनी तो निकल पड़ेगी.....

Sunday, July 26, 2009

जैसलमेर में भी गुड-न्यूज

तेल मण्डली के एक "बादशाह" ने कल ही इत्तला दी। बोले- जैसलमेर के लिए भी "गुड न्यूज" है। राज्य सरकार ने जैसलमेर स्थित दो तेल क्षेत्रों आरजे-ओएनएन-2005/1 और आरजे-ओएनएन-2005/2 के लिए पेट्रोलियम अन्वेषण लाइसेंस जारी कर दिया है। इसके तहत हिन्दुस्तान ऑयल एक्सप्लोरेशन कम्पनी लिमिटेड (एचओईसी) को इन दोनों ब्लॉक में तेल-गैस खोज करेगी। तकरीबन ढाई दशक से भी ज्यादा समय से यह कम्पनी तेल-गैस खोज के क्षेत्र में कार्य कर रही है। इस क्षेत्र में आने वाली देश की यह पहली निजी कम्पनी भी है। एचओईसी को न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पालिसी (नेल्प) के सातवें चरण में यह ब्लॉक आवंटित हुए थे। इसमें आरजे-ओएनएन-2005/1 ब्लॉक 1 हजार 424 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, वहीं आरजे-ओएनएन-2005/2 ब्लॉक का क्षेत्रफल 1 हजार 518 वर्ग किलोमीटर तक है।दोनों ब्लॉक में क्रमश: 20 एवं 25 फीसदी की हिस्सेदार रखने वाली एचओईसी जहां एक ब्लॉक की संचालक भी खुद ही है, वहीं दूसरे ब्लॉक आरजे-ओएनएन-2005/2 में ऑयल इण्डिया को ऑपरेटर बनाया गया है। एचओईसी फिलहाल देश के सात तेल-गैस क्षेत्रों में अन्वेषण एवं उत्पादन कर रही है। इसमें कावेरी, काम्बे एवं असम-अरकान बेसिन शामिल हैं। सरकार ने नेल्प-7 के कायदों के मुताबिक एचओईसी को सात साल के लिए इन दोनों ब्लॉक की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए कम्पनी के लाइसेंस की वैधता गत 13 जुलाई से मानी जाएगी। कम्पनी अब यहां तकनीकी परीक्षण एवं सर्वे के माध्यम से तेल के भण्डारों का पता लगाएगी।
तो है ना गुड न्यूज...?

Friday, July 10, 2009

करोड़ों का हुआ 'कबाड़ा'

भगवान जाने, हमारे तेल को किसकी नजर लग गई है। ना सरकार मान रही है और ना ही कम्पनियां। बाड़मेर से निकलने वाले कच्चे तेल पर वैट वसूली की खींचतान के कारण तेल उत्पादन में ही देरी नहीं हो रही, अब तो सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व से भी हाथ धोना पड़ रहा है। बीते दो महीनों में ही राजस्थान सरकार तकरीबन 500 करोड़ रुपए का राजस्व गंवा चुकी है। तेल मण्डली के एक 'तेली' ने बताया कि केयर्न इण्डिया ने तो पिछले मई महीने में ही तेल निकालने की तकनीकी तैयारी पूरी कर ली थी। कम्पनी की मई से ही दोहन शुरू करने की योजना भी थी। लेकिन जब सरकार ने इस तेल पर चार फीसदी वैट मांगा तो मामला अटक गया। 'तेली भाई' के अनुसार केयर्न इण्डिया एवं तेल की खरीदार कम्पनियां इस पर दो प्रतिशत सीएसटी (केन्द्रीय बिक्री कर) वसूलने का आग्रह कर रहीं हैं।

इसी खींचतान में राजस्थान की सरकार के हाथ से 500 करोड़ रुपए फिसल गए हैं। 'गणितज्ञ तेलियों' के अनुसार बाड़मेर से अगर मई में तेल उत्पादन शुरू हो जाता तो जून तक दो माह में राज्य सरकार को 500 करोड़ रुपए का राजस्व मिल सकता था। हकीकतन, मई में करीब 10 हजार बैरल प्रतिदिन तेल निकलने का अनुमान था, जो जून के आखिर तक बढ़ते-बढ़ते रोजाना 30 हजार बैरल तक पहुंच जाता। इस पर 65 डॉलर प्रति बैरल के अंतरराष्ट्रीय मूल्य से गणना करने पर राज्य सरकार को 10 से 12 करोड़ रुपए प्रतिदिन बतौर रॉयल्टी और बिक्री कर के रूप में मिल सकते थे।

पंगा यह है कि...

बाड़मेर में तेल खरीद केन्द्र होने के कारण राज्य सरकार यहां से निकलने वाले तेल पर चार फीसदी वैट मांग रही है, जबकि तेल खरीदार कम्पनियां और केयर्न इण्डिया अन्तरराज्यीय बेचान होने की वजह से केन्द्रीय बिक्री कर (सीएसटी) लगाने का आग्रह कर रही हैं। केयर्न ने इसके लिए सरकार के समक्ष कानूनी नजीरें भी पेश की हैं। उधर, वैट का मामला उलझने से कच्चे तेल का बिक्री-करार (कोसा) भी अटक गया है। फिलहाल यह मामला राजस्थान के अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है।

- गंगू-तेली

Monday, July 6, 2009

कुण्डली (कविता)

गंगूजी-तेली कहे, सुनिए राजा भोज ।
जब निकलेगा तेल, तब होगी सबकी मौज ॥
होगी सबकी मौज, तभी तो मंत्री-चाकर ।
झांक रहे कुओं में, आंखें फाड़े जाकर ॥
कह 'गंगू' कविराय, बोलते बम-बम बेली ।
तेल-तेल की माला जपते सारे तेली॥

'मंगला' पर 'शनि की दशा'

लगता है राजस्थान के मंगल तेल क्षेत्र पर शनि की दशा चल रही है। तारीख पर तारीख पड़ती जा रही है, पर तेल दोहन है कि शुरू होने का नाम ही नहीं ले रहा। तकनीकी रूप से तैयार होने के बावजूद केयर्न इण्डिया का जल्दी-उत्पादन शुरू करने का मंसूबा भी पूरा नहीं पाया। राज्य सरकार और कम्पनी के बीच वैट मामले को लेकर गतिरोध के चलते अभी भी इस मामले में तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। हालांकि पहले-पहले मई के आखिरी हफ्ते से तेल दोहन शुरू करने की कवायद चल रही थी। इस बारे में कम्पनी ने सीधे-सीधे तो ऐलान नहीं किया था, पर कई बार ऐसे संकेत दिए। इतना ही नहीं बाड़मेर के नगाणा स्थित मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल (एमपीटी) के तकनीकी रूप से तैयार होने में देरी को देखते हुए स्टार्ट-अप प्रोडक्शन पैकेज (सप) भी विकसित किया गया। इसमें कच्चे तेल से पानी एवं मिट्टïी के अंश अलग करने वाले छोटे सैपरेटर, बॉयलर एवं लोडिंग-बे समेत अन्य उपकरण लगाए गए, लेकिन राज्य सरकार की ओर से उत्पादित तेल पर स्थानीय कर यानी वैट की मांग के चलते इसमें रोड़ा अटक गया। अब कम्पनी और सरकार के बीच इस मुद्दे पर उच्चस्तरीय बातचीत का दौर जारी है, लेकिन मामला निर्णायक स्तर पर नहीं पहुंचा है।

'फल' रही है 'वाचा'

तेल दोहन शुरू करने के मामले में केयर्न की 'वाचा' फलीभूत हो रही है। कम्पनी ने शुरू में ही वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही से तेल दोहन शुरू करने की घोषणा कर दी थी। मई में उत्पादन की तैयारी पूरी करने के बाद भी केयर्न ने इस पर जुबान नहीं खोली। आखिर अब शीघ्र तेल दोहन शुरू करने की इच्छा के बावजूद देरी का मुंह देखना पड़ रहा है।

कयासों का दौर


दोहन शुरू होने को लेकर अब भी कयास ही लग रहे हैं। जून का महीना भी सूखा गुजरने के बाद अब जुलाई दूसरे पखवाड़े से तेल दोहन शुरू होने की चर्चा है। वैसे, कम्पनी वाले तो अभी भी कुछ नहीं बोल रहे। अपने राम को यही चिंता है कि आखिर होगा क्या...?
जय राजा भोज की...
- गंगू-तेली

धोरे बुझाएंगे तेल की प्यास-3

राजस्थान में 1600 करोड़ निवेश करेगी ओएनजीसी
मंगला-भाग्यम-ऐश्वर्या तेल क्षेत्र की संशोधित विकास योजना को मंजूरी
एक और अच्छी खबर है। देश के सबसे बड़े जमीनी तेल भण्डार 'मंगला' के विकास के लिए तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने आखिर शनिवार को 'मंगल सौगात' दे दी । तेल की रॉयल्टी को लेकर खासे नखरे दिखाने के बाद अब ओएनजीसी ने बाड़मेर के इस वृहद तेल क्षेत्र में साढ़े तीन सौ मिलियन डॉलर (करीब 1 हजार 647 करोड़ रुपए) के और निवेश की हांमी भरी है। ओएनजीसी के निदेशक मण्डल ने इसके साथ ही केयर्न इण्डिया की संशोधित विकास योजना पर भी मंजूरी की मुहर लगा दी है।
इस फैसले से सरकार और ओनएजीसी के बीच रॉयल्टी को लेकर चल रही खींचतान भी कम होने की उम्मीद है। इसके अलावा राजस्थान के तेल क्षेत्र से ओएनजीसी की भागीदारी लौटाने की कुछ समय से चल रही अटकलों पर भी विराम लग जाएगा। राज्य में तेल दोहन को अच्छी गति मिलेगी, सो अलग। आप तो जानते ही हैं कि मंगला क्षेत्र की संचालक कम्पनी केयर्न इण्डिया ने यहां से तेल दोहन की तकनीकी तैयारी पूरी कर ली है और कम्पनी किसी भी क्षण उत्पादन शुरू करने को तैयार है।
यह भी जानिए...
ओएनजीसी ने मंगला क्षेत्र के विकास के लिए 1।241 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 2.396 बिलियन डॉलर की योजना पर सहमति जताई है। ऐश्वर्या तेल क्षेत्र के लिए 275 मिलियन डॉलर की संशोधित योजना को मंजूरी दी गई है। ओएनजीसी इस योजना का 30 फीसदी का हिस्सा खर्च करेगा। वहीं, भाग्यम क्षेत्र एवं तेल पाइप लाइन के विकास खर्च में कोई बदलाव नहीं हुआ है। संशोधित विकास योजना के बाद अब एमबीए (मंगला-भाग्यम-ऐश्वर्या) तेल क्षेत्र में ओएनजीसी का कुल हिस्सा 874।2 मिलियन डॉलर से बढ़कर 1.22 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
योजना को मिलेगी रफ़्तार
तेल पर रॉयल्टी चुकाने की जिम्मेदारी के मसले पर 'तिरछी' चल रही ओएनजीसी ने केयर्न इण्डिया का रिवाइज्ड डवलपमेंट प्लान अटका दिया था। अब सरकार की ओर से रॉयल्टी भरपाई का भरोसा मिलने के बाद इसे मंजूरी दी गई है। दरअसल, राजस्थान तेल क्षेत्र में ओएनजीसी की 30 फीसदी हिस्सेदारी है, लेकिन पुरानी नीति के मुताबिक उसे यहां से निकलने वाले तेल पर केयर्न के हिस्से की भी रॉयल्टी चुकानी होगी।
- गंगू तेली
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