कंपनी वाले तो पहले ही कह चुके हैं कि हमारी तैयारी पूरी है। यही बात दोहराई है। कम्पनी के मुताबिक फिलहाल 30 हजार बैरल रोजाना के उत्पादन एवं परिवहन की योजना है, लेकिन इस साल के आखिर तक 50 हजार बैरल प्रतिदिन की क्षमता जुटा ली जाएगी। बाड़मेर से गुजरात के सलाया तट तक जाने वाली पाइप लाइन का कार्य भी इसी अवधि में पूरा हो जाएगा। 600 किलोमीटर लम्बी पाइपलाइन में से 520 किलोमीटर पाइपलाइन की वेल्डिंग पूरी हो गई है तथा 400 किमी तक पाइप बिछा दिए गए हैं। गुजरात में वीरमगाव टर्मिनल पर पाइप लाइन का कार्य 90 फीसदी काम पूरा हो गया है।
Thursday, July 30, 2009
अगस्त में निकलेगा तेल
कंपनी वाले तो पहले ही कह चुके हैं कि हमारी तैयारी पूरी है। यही बात दोहराई है। कम्पनी के मुताबिक फिलहाल 30 हजार बैरल रोजाना के उत्पादन एवं परिवहन की योजना है, लेकिन इस साल के आखिर तक 50 हजार बैरल प्रतिदिन की क्षमता जुटा ली जाएगी। बाड़मेर से गुजरात के सलाया तट तक जाने वाली पाइप लाइन का कार्य भी इसी अवधि में पूरा हो जाएगा। 600 किलोमीटर लम्बी पाइपलाइन में से 520 किलोमीटर पाइपलाइन की वेल्डिंग पूरी हो गई है तथा 400 किमी तक पाइप बिछा दिए गए हैं। गुजरात में वीरमगाव टर्मिनल पर पाइप लाइन का कार्य 90 फीसदी काम पूरा हो गया है।
Sunday, July 26, 2009
जैसलमेर में भी गुड-न्यूज
Friday, July 10, 2009
करोड़ों का हुआ 'कबाड़ा'
भगवान जाने, हमारे तेल को किसकी नजर लग गई है। ना सरकार मान रही है और ना ही कम्पनियां। बाड़मेर से निकलने वाले कच्चे तेल पर वैट वसूली की खींचतान के कारण तेल उत्पादन में ही देरी नहीं हो रही, अब तो सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व से भी हाथ धोना पड़ रहा है। बीते दो महीनों में ही राजस्थान सरकार तकरीबन 500 करोड़ रुपए का राजस्व गंवा चुकी है। तेल मण्डली के एक 'तेली' ने बताया कि केयर्न इण्डिया ने तो पिछले मई महीने में ही तेल निकालने की तकनीकी तैयारी पूरी कर ली थी। कम्पनी की मई से ही दोहन शुरू करने की योजना भी थी। लेकिन जब सरकार ने इस तेल पर चार फीसदी वैट मांगा तो मामला अटक गया। 'तेली भाई' के अनुसार केयर्न इण्डिया एवं तेल की खरीदार कम्पनियां इस पर दो प्रतिशत सीएसटी (केन्द्रीय बिक्री कर) वसूलने का आग्रह कर रहीं हैं।
इसी खींचतान में राजस्थान की सरकार के हाथ से 500 करोड़ रुपए फिसल गए हैं। 'गणितज्ञ तेलियों' के अनुसार बाड़मेर से अगर मई में तेल उत्पादन शुरू हो जाता तो जून तक दो माह में राज्य सरकार को 500 करोड़ रुपए का राजस्व मिल सकता था। हकीकतन, मई में करीब 10 हजार बैरल प्रतिदिन तेल निकलने का अनुमान था, जो जून के आखिर तक बढ़ते-बढ़ते रोजाना 30 हजार बैरल तक पहुंच जाता। इस पर 65 डॉलर प्रति बैरल के अंतरराष्ट्रीय मूल्य से गणना करने पर राज्य सरकार को 10 से 12 करोड़ रुपए प्रतिदिन बतौर रॉयल्टी और बिक्री कर के रूप में मिल सकते थे।
पंगा यह है कि...
बाड़मेर में तेल खरीद केन्द्र होने के कारण राज्य सरकार यहां से निकलने वाले तेल पर चार फीसदी वैट मांग रही है, जबकि तेल खरीदार कम्पनियां और केयर्न इण्डिया अन्तरराज्यीय बेचान होने की वजह से केन्द्रीय बिक्री कर (सीएसटी) लगाने का आग्रह कर रही हैं। केयर्न ने इसके लिए सरकार के समक्ष कानूनी नजीरें भी पेश की हैं। उधर, वैट का मामला उलझने से कच्चे तेल का बिक्री-करार (कोसा) भी अटक गया है। फिलहाल यह मामला राजस्थान के अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है।
- गंगू-तेली
Monday, July 6, 2009
कुण्डली (कविता)
'मंगला' पर 'शनि की दशा'
लगता है राजस्थान के मंगल तेल क्षेत्र पर शनि की दशा चल रही है। तारीख पर तारीख पड़ती जा रही है, पर तेल दोहन है कि शुरू होने का नाम ही नहीं ले रहा। तकनीकी रूप से तैयार होने के बावजूद केयर्न इण्डिया का जल्दी-उत्पादन शुरू करने का मंसूबा भी पूरा नहीं पाया। राज्य सरकार और कम्पनी के बीच वैट मामले को लेकर गतिरोध के चलते अभी भी इस मामले में तस्वीर साफ नहीं हो पाई है। हालांकि पहले-पहले मई के आखिरी हफ्ते से तेल दोहन शुरू करने की कवायद चल रही थी। इस बारे में कम्पनी ने सीधे-सीधे तो ऐलान नहीं किया था, पर कई बार ऐसे संकेत दिए। इतना ही नहीं बाड़मेर के नगाणा स्थित मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल (एमपीटी) के तकनीकी रूप से तैयार होने में देरी को देखते हुए स्टार्ट-अप प्रोडक्शन पैकेज (सप) भी विकसित किया गया। इसमें कच्चे तेल से पानी एवं मिट्टïी के अंश अलग करने वाले छोटे सैपरेटर, बॉयलर एवं लोडिंग-बे समेत अन्य उपकरण लगाए गए, लेकिन राज्य सरकार की ओर से उत्पादित तेल पर स्थानीय कर यानी वैट की मांग के चलते इसमें रोड़ा अटक गया। अब कम्पनी और सरकार के बीच इस मुद्दे पर उच्चस्तरीय बातचीत का दौर जारी है, लेकिन मामला निर्णायक स्तर पर नहीं पहुंचा है।
'फल' रही है 'वाचा'
तेल दोहन शुरू करने के मामले में केयर्न की 'वाचा' फलीभूत हो रही है। कम्पनी ने शुरू में ही वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही से तेल दोहन शुरू करने की घोषणा कर दी थी। मई में उत्पादन की तैयारी पूरी करने के बाद भी केयर्न ने इस पर जुबान नहीं खोली। आखिर अब शीघ्र तेल दोहन शुरू करने की इच्छा के बावजूद देरी का मुंह देखना पड़ रहा है।
कयासों का दौर
दोहन शुरू होने को लेकर अब भी कयास ही लग रहे हैं। जून का महीना भी सूखा गुजरने के बाद अब जुलाई दूसरे पखवाड़े से तेल दोहन शुरू होने की चर्चा है। वैसे, कम्पनी वाले तो अभी भी कुछ नहीं बोल रहे। अपने राम को यही चिंता है कि आखिर होगा क्या...?
जय राजा भोज की...
- गंगू-तेली