Friday, July 10, 2009

करोड़ों का हुआ 'कबाड़ा'

भगवान जाने, हमारे तेल को किसकी नजर लग गई है। ना सरकार मान रही है और ना ही कम्पनियां। बाड़मेर से निकलने वाले कच्चे तेल पर वैट वसूली की खींचतान के कारण तेल उत्पादन में ही देरी नहीं हो रही, अब तो सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व से भी हाथ धोना पड़ रहा है। बीते दो महीनों में ही राजस्थान सरकार तकरीबन 500 करोड़ रुपए का राजस्व गंवा चुकी है। तेल मण्डली के एक 'तेली' ने बताया कि केयर्न इण्डिया ने तो पिछले मई महीने में ही तेल निकालने की तकनीकी तैयारी पूरी कर ली थी। कम्पनी की मई से ही दोहन शुरू करने की योजना भी थी। लेकिन जब सरकार ने इस तेल पर चार फीसदी वैट मांगा तो मामला अटक गया। 'तेली भाई' के अनुसार केयर्न इण्डिया एवं तेल की खरीदार कम्पनियां इस पर दो प्रतिशत सीएसटी (केन्द्रीय बिक्री कर) वसूलने का आग्रह कर रहीं हैं।

इसी खींचतान में राजस्थान की सरकार के हाथ से 500 करोड़ रुपए फिसल गए हैं। 'गणितज्ञ तेलियों' के अनुसार बाड़मेर से अगर मई में तेल उत्पादन शुरू हो जाता तो जून तक दो माह में राज्य सरकार को 500 करोड़ रुपए का राजस्व मिल सकता था। हकीकतन, मई में करीब 10 हजार बैरल प्रतिदिन तेल निकलने का अनुमान था, जो जून के आखिर तक बढ़ते-बढ़ते रोजाना 30 हजार बैरल तक पहुंच जाता। इस पर 65 डॉलर प्रति बैरल के अंतरराष्ट्रीय मूल्य से गणना करने पर राज्य सरकार को 10 से 12 करोड़ रुपए प्रतिदिन बतौर रॉयल्टी और बिक्री कर के रूप में मिल सकते थे।

पंगा यह है कि...

बाड़मेर में तेल खरीद केन्द्र होने के कारण राज्य सरकार यहां से निकलने वाले तेल पर चार फीसदी वैट मांग रही है, जबकि तेल खरीदार कम्पनियां और केयर्न इण्डिया अन्तरराज्यीय बेचान होने की वजह से केन्द्रीय बिक्री कर (सीएसटी) लगाने का आग्रह कर रही हैं। केयर्न ने इसके लिए सरकार के समक्ष कानूनी नजीरें भी पेश की हैं। उधर, वैट का मामला उलझने से कच्चे तेल का बिक्री-करार (कोसा) भी अटक गया है। फिलहाल यह मामला राजस्थान के अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है।

- गंगू-तेली

2 comments:

Love : God's blessings said...

Gangu Bhaiya...
Aapka Bhi javab nahi. Pakke teli lagte ho....

Badhaai.

Ritesh said...

haan nazar to chiknai bhari hai kintu itna nuksan dekhkar yahan atak hi gayi. Apka kaam badhiya hai. Apko Sadhuvad....

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