आप सबको गंगू तेली की राम-राम...! मैं रहता हूं, हिन्दुस्तान के उस हिस्से में, जो प्रकृति का क्रीड़ांगन है। कहीं दूर तक फैला बेहिसाब रेत का समंदर, तो कहीं पानी से लबालब झील। बंजर-वीरान जमीं, खुशियों से चहकते गांव, 'खिलकौरी' करती ढाणियां, मन मोहते हरिण-मोर और भोलेपन से भरे लोग...इन्हीं से बनता है मेरा रेगिस्तान। पानी हमारे घरों में नहीं होता, पर 'आंख के पानी' और 'आदमी के पानी' की कीमत हम खूब समझते हैं। इसीलिए तो देवता आते हैं हमारी धरती पर...! अखबार कहते हैं- पानी ना सही, अब तेल उगलेगी हमारी ज़मीन। तैयारी हो गई, बस काम शुरू होने भर की देरी है...। बड़ी-बड़ी कंपनियों ने यहां कुएं खोद लिए हैं। यह सुनकर ही हमारा दिल तो बल्लियों उछल रहा है। सोचा, आपको भी हमारी खुशियों में शरीक कर लें। इसीलिए आ पहुंचा ब्लॉग की इस दुनिया में। ....तो अब तेल की बात पर 'गपियाते' रहेंगे हम-आप।
आपका
- गंगू तेली