Wednesday, August 5, 2009

कहीं 'मामू' तो नहीं बना रहे

राजा भोज अक्सर कहते हैं- रे गंगू, तू भी पूरा 'मामू' है...। कुछ समझता ही नहीं...। दुनियादारी की भी थोड़ी समझ रख बावळे...। और 'अपने-राम' मुस्कुरा कर रह जाते हैं।
पता है? राजाजी तो प्यार से कहते हैं, पर जनाब इन तेल निकालने वालों ने तो हमको सचमुच में ही मूर्ख समझ रखा है। चौथाई साल से तो राजस्थान को ही नहीं पूरे देश को 'मामू' बना रहे हैं।
'भाई-लोगों' ने पहले-पहल बात उछाली कि मई के महीने से थार के धोरे तेल उगलने लगेंगे। यह खबर सुनते ही पप्पू पहलवान से लेकर चंपू चोर तक सब खुश हो गए। अपने बिरादर 'तेलियों' ने भी जमकर तालियां बजाई। करोड़ो आखों ने ख्वाब सजाए और रूखे राजस्थान में 'चिकनाई' का जश्न मनाया गया। 'अपने-राम' तेल निकलने वाली जगह के आसपास में गांव-वालों से बतियाए तो वहां भी लोगों के चेहरे पर नूर नजर आया, लेकिन बात सुसुरी बात ही रह गई। मई के चारों के चारों हफ्ते सूखे गुजर गए। यकीन जानिए सा'ब, सबको बड़ी निराशा हुई। अपने-राम ने भी सोचा कि यार... इस कदर तो सावन भी बेवफाई नहीं करता। भले ही धोरों वाली धरती से उसका पुराना वैर है, पर वार-त्योहार में दो-चार बार तो 'बरखा-रानी' को भेज ही देता है। मगर तेलवालों ने तो झट से 'ठेंगा' दिखा दिया। आखिर अपन ने भी मन को समझाया कि भाई-
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता ॥
बाद में पता चला कि सूबे की सरकार के साथ वैट का मामला अटक गया है। बड़ा भारी रोड़ा है। कम्बखत 'क्रेन' से हटाना पड़ेगा। 'सेटिंग' चल रही है और जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। ...सो, अपन ने तो मास्टर चम्पालाल की पाठशाला में पढऩे वाले तीसरी क्लास के बच्चे की तरह मुंह पर उंगली रख दी। पूरा जून खामोशी में बिता दिया। लोग कहते रहे- जून में तेल दोहन शुरू हो जाएगा। जून आखिर तक तो पक्का। सोलह आना देख लेना। पर महीने बीत गया और हुआ वहीं, जो पिछले महीने में हुआ था। अब 'अपने-राम' ने तेल वालों से पूछा तो बोले- हमने कब कहा था कि मई-जून से तेल निकालेंगे। ये तो भइयै खबरचियों के कयास हैं। हमारा 'टारगेट' तो तीसरी तिमाही से शुरू करने है। अपन ने ऊंची कुर्सियों वालों भी पूछा, लेकिन अपन ठहरे मामूली आदमी। अव्वल तो 'साहब लोगों' ने जवाब ही नहीं दिए। गलती से कुछ बोले भी तो ऐसा घुमा-फिराकर कि उसका अर्थ 'गंगू तेली' तो क्या साक्षात 'राजा भोज' भी नहीं समझ सके। खैर, बातों-बातों में जुलाई का महीना भी लग गया। अबके थोड़ी आस बंधी। लगा कि अब तो 'टारगेट' वाला 'टाइम' भी शुरू हो गया। भाई-लोग कह रहे हैं कि हमने तैयार पूरी कर रखी है। बस 'नल' खोलने भर की देरी है, तो अबकी दफा तो कुछ हो ही जाएगा, लेकिन हुजूरे-आला तीसरी तिमाही का पहला महीना भी ऐसे ही फुर्र हो गया, जैसे बाकी के हुए थे। पर, इसके बाद 'बड़े लोगों' ने अपना लेखा-जोखा शेयर बाजार में सुनाया। रुपयों की जोड़-बाकी गिनाई। तरक्की के ख्वाब दिखाए। तेल निकालने वाली कम्पनी के सबसे बड़े 'बाबूजी' ने राजस्थान से तेल दोहन शुरू करने की मुनादी करवाई और अगस्त का महीना ऐलान कर दिया। 'बाबूजी' गोरे मालिकों की जुबानी बोले-
राजस्थान की धरती से तेल निकालना हमारे लिए मील का पत्थर साबित होगा।
'बाबूजी' की बात सुनकर अपन को भी खूब 'हरष' हुआ, सो बड़े तेलियों से पूछा कि- भाईसा, अगस्त के महीने में तो सुसुरे तीस दिन होवै हैं। अपने हिस्से कौनसा दिन आवैगा? भाईसा ने भी हौले से कहा- देख गंगू, अभी तो अगस्त की बात कही है, पर वैट वाले रोड़े की 'सेटिंग' अभी भी बैठी नहीं है। अब होने को तो इसी महीने में ले-देकर मामला 'फिट' हो जाए, पर ना हुआ तो यह महीना भी सूखा जा सकता है। इसलिए ज्यादा दिमाग मत दौड़ा बावळे...!
फिर कमर पे धौल धरते हुए भाईसा ने खीसें निपोर दीं- हें-हें-हें, तू भी पूरा मामू है रे गंगू। अब आप ही कहिए हुजूर, अपने कहने को क्या रह गया था? सो मामूली आदमी की तरह चुप हो गए। वैसे भी साहब, इन 'कॉरपोरेट' लोगों को 'ऑपरेट' करना अपने-राम को कहां आता है.....
- गंगू तेली

No comments:

Blog Widget by LinkWithin