आखिर वही हुआ। अपने राम ने तो चार महीने पहले ही कह दिया था। रबर खींचो, हाथ करीब लाओ, पर भाई-लोग हैं कि मानते ही नहीं। आखिर एक 'राजस्थानी' से रहा ना गया और पहुंच गया अदालत की चौखट पर....।
जी हां। वैट और सीएसटी की लड़ाई अदालत पहुंच ही गई। इसकी चेतावनी तो केयर्न इण्डिया ने दी थी, लेकिन भाई-लोगों ने तो डिलीवरी पॉइंट बदलने को ही चुनौती दे डाली है।
खबरचियों के मुताबिक, धोरों वाली जमीन यानी बाड़मेर से निकल रहे तेल की बिक्री को लेकर डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर से बदलकर गुजरात के सलाया व अन्य स्थानों पर ले जाने को एक जनहित याचिका के जरिए राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ में चुनौती दी गई है। इस पर खण्डपीठ के न्यायाधीश एन.पी. गुप्ता व डी.एन. थानवी ने केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव, निदेशक, राजस्थान के मुख्य सचिव, केयर्न एनर्जी इण्डिया एवं राजस्थान के कर आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। याचिका दाखिल की है जोधपुर निवासी अधिवक्ता कैलाश भण्डारी ने। भण्डारी ने अदालत को बताया कि केयर्न एनर्जी (केयर्न इण्डिया की मुख्य कम्पनी) और इससे पहले शेल इण्डिया ने केन्द्र सरकार के साथ अनुबंध में 'राजस्थानी तेल' का आपूर्ति स्थल (डिलीवरी पॉइंट) बाड़मेर में ही रखना तय किया था, लेकिन केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने 30 अप्रेल 08 को डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर के बजाय सलाया (गुजरात) कर दिया। इसमें राज्य सरकार की सहमति भी नहीं ली गई। इससे राज्य सरकार को इस तेल पर 4 प्रतिशत की दर से वैट (Value added tax) नहीं मिल पाएगा। यह बिक्री अंतरराज्यीय बिक्री कहलाएगी और इस पर केवल 1 प्रतिशत की दर से केन्द्रीय बिक्री कर ही प्राप्त होगा। ऐसे में आगामी पांच साल में राजस्थान को करीब 2400 करोड़ रुपए की राजस्व हानि होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि प्राकृतिक गैस नियम 1959 (Petroleum and Natural Gas Rules, 1959) की धारा 5 के मुताबिक राज्य की पूर्व स्वीकृति के बिना केन्द्र सरकार अनुबंध में परिवर्तन नहीं कर सकती है। याचिका में केन्द्र सरकार की ओर 30 अप्रेल 08 को जारी आदेश अपास्त करने तथा तेल का डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर में ही रखे जाने का अनुरोध किया गया।
जी हां। वैट और सीएसटी की लड़ाई अदालत पहुंच ही गई। इसकी चेतावनी तो केयर्न इण्डिया ने दी थी, लेकिन भाई-लोगों ने तो डिलीवरी पॉइंट बदलने को ही चुनौती दे डाली है।
खबरचियों के मुताबिक, धोरों वाली जमीन यानी बाड़मेर से निकल रहे तेल की बिक्री को लेकर डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर से बदलकर गुजरात के सलाया व अन्य स्थानों पर ले जाने को एक जनहित याचिका के जरिए राजस्थान उच्च न्यायालय की खण्डपीठ में चुनौती दी गई है। इस पर खण्डपीठ के न्यायाधीश एन.पी. गुप्ता व डी.एन. थानवी ने केन्द्रीय पेट्रोलियम सचिव, निदेशक, राजस्थान के मुख्य सचिव, केयर्न एनर्जी इण्डिया एवं राजस्थान के कर आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। याचिका दाखिल की है जोधपुर निवासी अधिवक्ता कैलाश भण्डारी ने। भण्डारी ने अदालत को बताया कि केयर्न एनर्जी (केयर्न इण्डिया की मुख्य कम्पनी) और इससे पहले शेल इण्डिया ने केन्द्र सरकार के साथ अनुबंध में 'राजस्थानी तेल' का आपूर्ति स्थल (डिलीवरी पॉइंट) बाड़मेर में ही रखना तय किया था, लेकिन केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने 30 अप्रेल 08 को डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर के बजाय सलाया (गुजरात) कर दिया। इसमें राज्य सरकार की सहमति भी नहीं ली गई। इससे राज्य सरकार को इस तेल पर 4 प्रतिशत की दर से वैट (Value added tax) नहीं मिल पाएगा। यह बिक्री अंतरराज्यीय बिक्री कहलाएगी और इस पर केवल 1 प्रतिशत की दर से केन्द्रीय बिक्री कर ही प्राप्त होगा। ऐसे में आगामी पांच साल में राजस्थान को करीब 2400 करोड़ रुपए की राजस्व हानि होगी। याचिकाकर्ता का कहना था कि प्राकृतिक गैस नियम 1959 (Petroleum and Natural Gas Rules, 1959) की धारा 5 के मुताबिक राज्य की पूर्व स्वीकृति के बिना केन्द्र सरकार अनुबंध में परिवर्तन नहीं कर सकती है। याचिका में केन्द्र सरकार की ओर 30 अप्रेल 08 को जारी आदेश अपास्त करने तथा तेल का डिलीवरी पॉइंट बाड़मेर में ही रखे जाने का अनुरोध किया गया।
आप तो जानते ही हैं कि....
वैट और केन्द्रीय बिक्री कर के मुद्दे पर केयर्न इण्डिया और राज्य सरकार के बीच भी इन्हीं कारणों से टसल बनी हुई है। राज्य सरकार जहां इस तेल पर वैट मांग रही है, वहीं केयर्न कम्पनी सीएसटी के लिए अड़ी हुई है। ऐसे में अभी तक राज्य को धेले भर की भी राजस्व आय नहीं हुई है।
आपको हमारा ब्लॉग पसंद आ रहा है, तो गंगूजी की तेल मंडली में शामिल होइए ना...।
1 comment:
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं...
अच्छा है गंगूजी। यह लेख जानकारीपरक तो है, ही रोचक भी है। आपको साधुवाद, अच्छी जानकारी देने के लिए। वैसे, पीडीएफ उपहार के लिए भी शुक्रिया......
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