Sunday, October 25, 2009

कर्जे की माया

हुजूर....! दिवाली की राम-राम। आप भी सोच रहे होंगे, ये गंगू भी कैसा बावळा है! दिवाली गए हफ्ता बीत गया और इसको अब राम-राम करने की सूझी है...। पर साहब आप को क्या बताएं? अपनी दिवाली तो पिछले साल 26 अक्टूबर को ही मनी थी। क्या दिन था वह भी। उम्मीदों से कहीं बढ़कर खुशियां हमारी झोली में आ गिरी और इस साल के फरवरी तक हमारे घर में ही रही। दिल में भी तभी तक दिवाली थी। इसके बाद तो जाने किसकी नजर लग गई। सब कुछ ऐसे काफूर हो गया, जैसे पूजा के कमरे में रखा हुआ कपूर हवा में घुल जाता है। पर सबसे बड़ा फर्क यह था जनाब कि कपूर के कारण घर-आंगन खुशबू से लबरेज हो जाता है, लेकिन यहां तो जाने कैसी-कैसी गंध फैल गई। जून के बाद तो और भी उजाड़ हो गया। आप भी सोच रहे होंगे, ये गंगू आज कैसी उल्टी बातें कर रहा है। पर क्या बताएं हुजूर, कभी-कभी मन पर काबू ही नहीं रहता। ना चाहते हुए भी बहुत कुछ निकल जाता है जुबान से।

खैर, आप लोग तो इस तरफ सौ ग्राम भी भेजा मत खपाइए। अपन तो यूं ही जज्बाती हो गए थे। चलिए, मुद्दे पर लौटते हैं। दरअसल, दिवाली का मौका था तो अपन राजा भोज से मिलने चले गए थे। एकाध दिन पहले ही लौटना हुआ है। वहां गांव के सेठ लाला चम्पकलाल से भी मिलना हो गया।

अपने-राम को देखते ही बोले- क्या रे तेली! दिखता नहीं आजकल? करता क्या है? अपन ने भी टके सा जवाब दे दिया- मौज कर रहा हूं। बस इसी बात पर लालाजी बिगड़ गए। गुर्राते हुए कहने लगे- हां भई, तुम क्यों न करोगे मौज.....? काम ही यही है तुम्हारा तो...। कमाना-धमाना तो है नहीं। बस, ऋण लो और घी पीओ। वैसे भी, दुनिया भर की फाइनेंस कम्पनियां खुल गई हैं तुम्हारे जैसे लोगों के लिए। इसीलिए पट्ठे इधर का रस्ता भी भूल गए हो। वरना हमारे बिना तो धेले जित्ता काम भी ना होता था तुम्हारा।

लालाजी तो ऐसे खीझे जैसे लाखों का कर्जा उठाकर हमने उन्हें ठेंगा दिखा दिया हो। खैर, अपन ने धीरज का बांध टूटने नहीं दिया और पूरा दम लगाकर लालाजी की बात को उखाड़ फेंका- मांई-बाप, आप ही बताओ कर्जा लेकर मौज कौन नहीं करता। बड़े-बड़े धन्ना सेठ भी आजकल यही करते हैं। कार या बंगला लेने के लिए बैग में नोट भरे हो तो भी बैंक से कर्जा लेते हैं। ताकि काली कमाई की पोल जगजाहिर ना हो जाए। और तो और बड़ी-बड़ी कम्पनियों के मालिक भी झट से हाथ फैला लेते हैं। कुछ तो इसमें भी बड़े शातिर होते हैं। धन का जुगाड़ किसी और तरीके से करते हैं और बताते कुछ और हैं। अब देखिए ना...। राजस्थान के सुनहरे धोरों से तेल निकालने वाली कम्पनी ने हाल ही 1.6 अरब की वित्तीय सहायता जुटाई। इसके बाद अखबारों में खबरें छपी कि कम्पनी ने कर्जा लिया है। दूसरे ही दिन अपने राम को पता चला कि कम्पनी ने मलेशिया वालों को हिस्सेदारी बेचकर ये पैसा जुटाया है और मलेशियन कम्पनी इसे अपनी उपलब्धि मानकर बल्लियों उछल रही है। तेली-भाइयों की मानें तो कम्पनी की मलेशिया वालों के साथ भागीदारी तो पहले से थी, पर अब ये 2.3 फीसदी से बढ़कर 14.94 फीसदी तक हो गई है। कहने वाले तो यह भी कह रहे है कि मलेशिया वाली कम्पनी और भागीदारी खरीदने के मूड में है।

अब साहब, अपन तो ठहरे अनपढ़ तेली। दिल के मामले में तो पहले ही फेल हो चुके। अब भला दिमाग के मामले में कहां से पास हो जाने हैं। यानी साहब अपने राम तो सूपर-डूपर 'फेलेश्वरनाथ' हैं। इसीलिए, यकीन जानिए हुजूर... अपने राम को तो यह 'माया' जरा भी समझ नहीं आई। वैसे, इस इलाके के महारथी बताते हैं कि विदेशी माता-पिता की संतान भारतीय कम्पनी के लिए भी यह खुशी की बात है। इस कम्पनी के बड़े अफसर भी खूब राजी हो रहे हैं। वैसे भी, मलेशिया वाली कम्पनी ने तीसरी दफा अपनी भागीदारी बढ़ाई है। खैर, जो भी हो साहब! अपने राम तो सभी के लिए भलाई की दुआ ही करते हैं, पर विनती सिर्फ इतनी है कि हुजूरे-आला हमने जैसा समर्पण दिया है, वैसा ही आप भी दीजिएगा। क्योंकि विश्वास टूटता है तो आवाज नहीं होती, मगर दर्द बहुत होता है.... और हम तो इसे भुगत ही रहे हैं.....।

1 comment:

Unknown said...

गंगू भाई, आप की भी माया गजब की है. अच्छा लगा पढ़कर...
वैसे आप का राह भटकना भी पसंद आया. दिल की बाते तो होती ही ऐसी है...

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